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मारवासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
[३१७ नदीनामेव सेतुस्थानामित्यर्थात् सलिलमिति कर्तृ । समुद्रतरङ्गाभिघातात्स्खलितं सद्यद्रमतिकामति समुद्रजलमित्यर्थात्, तत्प्लवगकलकलवितीर्णतूर्य सदुद्धावति । तथा च समुद्रतरङ्गाभिहतमपि सेतनदीजलं यत्समुद्रमेवातिक्रामति तत्प्लवगकलकलमहिम्ना बहुलीक्रियमाणत्वनिमित्तक मित्युप्रेक्षा। एतेन समुद्रातिक्रमक्षमत्वात्सेतुनदीनामुत्कर्षः सूचितः ॥६५॥
विमला-( गगन में लाये जाते हुये पर्वतों पर स्थित ) मृग उदधि को तथा जनसमूह नल को एक साथ देख रहे थे। मृगों के नेत्र सेतु पर गिरने की आशङ्का से भयपूर्ण थे और जनसमूह के नेत्र समुद्रजल में सेतु के पतन की आशङ्का से भयाकुल थे। समुद्र का जल सेतु से टकरा कर नदियों के प्रवाह को अतिक्रान्त करता था, मानों वह वानरों के कलकलरूप तूर्यनाद से ऊपर उठता था।
विमर्श-वाद्य आदि के कोलाहल से जल का ऊपर उठना लोक में प्रत्यक्षसिद्ध है ॥६५॥
अथ पञ्चभिः स्कन्धकैरन्त्यकुलकेन सेतुं वर्णयतिइअ समलमहिमलुक्खनमाहिहरसंघाणिम्मिअमहारम्भम् । णिअच्छाआवइपरसामलइअसाअरोअरजलद्धन्तम् । विसमोसरिअसिलाअलदढघाउक्खित्तमच्छपच्छिमभाअम् । मञ्झन्छिण्णभुअंगमवेड्ढप्पीडणविआरिअसिलावेढ़म् ॥६७॥ सेलम्मूलणसंभमगहि अफिलिअगअमग्गधाइप्रसीहम् गिरिसिहरणिसण्णाणिगिरिपेल्लिअपिन्तमुहलजलहरसलिलम् ॥६॥ पासल्लपडिअवणगअरुद्धमहोज्झरदुहापहाविअसलिलम् । धरणिहरन्तरिमठ्ठि प्रचन्दणवणमुणिमलप्रसिहरक्खण्डम् ॥६६॥ वीईपडिऊलाहप्रथोउवेल्लिप्रदुमावलम्बन्तलअम् विसमसिहरन्तरागप्रसंवेल्लि असाअरं घडेन्ति जलवहम् ॥७॥
(कुलअम् ) [ इति सकलमहीतलोत्खातमहीधरसंघातनिर्मितमहारम्भम् । निजकच्छायाव्यतिकरश्यामलितसागरोदरजलार्धान्तम् विषमापसृतशिलातलदृढघातोत्कृत्तमत्स्यपश्चिमभागम् मध्यच्छिन्नभुजंगमवेष्टोत्पीडनविदारितशिलावेष्टम् शैलोन्मूलसंभ्रमगृहीतभ्रष्टगजमार्गधावितसिंहम् गिरिशिखरनिषण्णानीतगिरिप्रेरितनिर्यन्मुखरजलधरसलिलम् ।। पार्श्वपतितवनगजरुद्धमहानिर्झरद्विधाप्रधावितसलिलम् धरणिधरान्तरितस्थितचन्दनवनज्ञातमलयशिखरखण्डम् ॥
सलिलम
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