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आश्वासः ]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
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विमला---यह तमसमूह ( बृक्षादिवत् ) अवखण्डनयोग्य होते हुए भी दृढ़ है, ( अतएव इसका अवखण्डन नहीं हो सकता ), खनने योग्य होते हुए भी अत्यन्त निबिड है ( अतएव इसका खनन नहीं हो सकता ), अवलम्बितव्य होते हुये योग्य है तथा चन्द्रमा से भेत्तव्य होते हुए भी ठोस है ( अतएव इसका भेदन भी नहीं हो सकता ) । इस प्रकार इसका प्रसार बढ़ता ही जा रहा है ॥२६॥ अथ गुरुतामाहवहइ व महिलभरिओ गोल्ले व पच्छओ धरेइ व पुरमो। पेल्लेइ व पासगओ गरुआइ व उवरिसंठिओ तमणिवहो ॥३०॥ [वहतीव महीतलभृतो नोदयतीव पश्चाद्धारयतीव पुरतः ।
प्रेरयतीव पार्श्वगतो गुरुकायत इवोपरिसंस्थितस्तमोनिवहः ।।] तमसो निवहो महीतले भृतो व्याप्तः सन् भूमिष्ठं वस्तुजातं वहत्युद्वहतीन भूमिवदाधारीभूतत्वात् । पश्चात्पृष्ठतो नोदयतीव पृष्ठचर इव पुरोवतिनम् । पुरतोऽग्रे धारयतीव पृष्ठपातुकं पुरोवर्तीव पृष्ठतोऽनोदनेऽप्यपतनात् । पार्श्वयोः स्थितः सन् प्रेरयतीव यन्त्रयतीव यन्त्रवत्सिद्धार्थम् । तेषामेवोपरि स्थितः सन् गुरुकायत इव पतितगृहवदिति वहननोदनधारणप्रेरणगुरुत्वानुभवेन व्यापकत्वविशिप्टमूर्तत्वमुत्प्रेक्षितम् ॥३०॥
विमला-अन्धकार महीतल पर ऐसा व्याप्त है कि मानों ( भूमि के समान ही सकल वस्तुओं का आधार बन जाने से ) वह (भूमि की सकल वस्तुओं को) वहन कर रहा है, पीछे प्रेरित-सा कर रहा है, सामने धारण-सा कर रहा है, दोनों ओर स्थित होकर यन्त्रित-सा कर रहा है एवम् ऊपर स्थित होकर दबा-सा रहा है ॥३०॥ अथ शशिकरोद्गममाह
दोसइ प्रतिमिरमिलिमो कसणसिलाभिण्णसलिलसीभरधवलो। थोउम्मिल्लन्तदिसो उअअन्तरिअतणुओ ससिअरुज्जोओ ॥३१॥ [ दृश्यते च तिमिरमिलितः कृष्णशिलाभिन्नसलिलशीकरधवलः ।
स्तोकोन्मीलद्दिगुदयान्तरिततनुकः शशिकरोद्योतः ॥]
उदयेनोदयाचलेनान्तरितः, अत एव तनुक : कृशः । शशिकराणामुद्दयोतः पुरःप्रकाशो दृश्यते च । कीदृक् । तिमिरेण मिलितोऽतएव कृष्णशिलया भिन्नः संभिन्नो यः शलिलशीकरस्तद्वद्धवलः । शिलातिमिरयोः श्यामत्वेन शीकरोड्योतयोः श्वत्येन साम्यम् । तत एव स्तोकमल्पमुन्मीलन्ती प्रकाशं गच्छन्ती दिक्प्राची यस्मात्स तथा। किंचिदवच्छेदेन धवलिम्ना तिमिरापहारादिति भावः ॥३१॥
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