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सेतुबन्धम्
[ तृतीय
द्धारमाचरन्तीति रामसंबन्धेन रावणेन समं जातवैरा वयं सर्व एव तथा करवामेति भावः' इत्याहुः ॥४२।।
विमला-(जिघांसु) सुभट वैरी के द्वारा म्यान से खींचे गये खड्गरूप मार्ग से वैर के आबन्ध आ जाते हैं-खड्ग खींचने के साथ ही वे उत्पन्न हो जाते हैं और ( वैर के निमित्त का पुन:-पुनः स्मरण होते रहने से ) वे वृद्धि की पराकाष्ठा पर पहुंच जाते हैं एवं केवल उसी से सम्बन्ध रखते हैं दूसरे से नहीं; जैसे [ अतिभूमि ब्रजन्तः ] बहुत भूमि उड़कर जाते हुये [ कृष्टसुभटासिपत्रपथापतिताः ] सुभट शत्रु के खींचे गये खड्ग से छिन्न पक्षशैल उड़ने के मार्ग से नीचे भूमि पर आ जाते हैं और जहाँ पड़ गये उससे अन्यत्र दूसरे स्थान को नहीं जाते हैं । (एवम् राम का ही वैर रावण से है तथापि परम्परा सम्बन्ध से हम सब अनुयायियों का भी उससे वैर हो चुका, अतः राम के साथ हमारा सहयोग होना चाहिये) ॥४२॥
राघवेण यदि वैरं स्यात्तदा शोचनामपहाय कार्यमेव घटयेत्तत्कथमस्माभिरेव तथा कर्तव्यमित्यत आह
ता सोअइ रहतणमो ताव अ सीमा वि हत्थपल्हत्थमूही। ताव अ धरइ दहमुहो जाव विसाएण वो तुलिज्जइ धोरम् ॥४३॥ [तावच्छोचते रघुतनयस्तावच्च सीतापि हस्तपर्यस्तमुखी। तावच्च ध्रियते दशमुखो यावद्विषादेन वस्तुल्यते धैर्यम् ॥]
रामस्तावदेव सीतानि मित्तं शोचते तावत्सीतापि चिन्तया हस्तविन्यस्तमुखी। विरहिणी हस्ते मुखमारोप्य चिन्तयतीति समाचारः । तावच्च रावणो ध्रियते जीवति यावद्युष्माकं धैर्य सीतोद्धाराय स्थिरतारूपं विषादेनानध्यवसायमूलकमनस्तापेन तुल्यते सदृशीक्रियते । तथा च युष्मद्धय विषादाविदानी सत्प्रतिपक्षिताविति प्रवृत्तिनिवृत्त्योरेकमपि न जनयतः । यदेव त्वधिकबलं स्यात्तदेव स्वकार्य जनयेत् । तथा सति यदि विषादं जित्वा धैर्य वर्तेत तदा रामशोचनसीतासंतापरावणजीवि. तानामभावोऽपि भवेदिति भावः । तुल्यते उत्क्षिप्यते वा ॥४३॥
विमला-जब तक तुम लोगों के विषाद और धैर्य दोनों की मात्रा समान है तभी तक राम का शोक है, तभी तक सीता हाथ पर मुह रखकर चिन्ता निमग्न है और रावण भी तभी तक जी रहा है ( ज्यों ही तुम धैर्य से विषा को जीत लोगे त्यों ही राम का शोक, सीता का सन्ताप और रावण का जीवर समाप्त समझो ) ॥४३॥
प्रकृतकार्योन्मुखा अपि वयं यदि विषण्णत्वेन ज्ञातास्तदा तथैवास्तु दृश्यतामितर कतरस्तत्कुर्यादित्यत आह
अण्णो अण्णस्स मणो तुम्ह ण आणे प्रणाहियो मह प्रप्पा । णिवपणन्तस्स इमं दररूढवणप्पसाहणं हनुमन्तम् ॥४४॥
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