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-महानुभावो! यह चीज तो काफी लंबी-चौडी है, किंतु फिर भी संक्षेप में जैनधर्म त्याग-प्रधान एवं आचार-शुद्धि पर अधिक जोर देता है, जैनधर्म में कर्मवादका सिद्धान्त एवं स्याद्वाद-अनेकांतवाद और कठिन जीवनचर्या प्रधानरूपसे मुख्य है
જિજ્ઞાસુભાવથી મુલાકાતે આવેલ સનાતનીઓ પૂજ્યશ્રીની શાંત–ઉદાત્ત પ્રવૃત્તિ નિહાળી ખૂબ જ સંતોષ પામી જૈનધર્મની વિશેષતાઓથી પ્રભાવિત બની સ્વસ્થાને ગયા.
સંન્યાસી મહારાજ પાસે જઈ જિજ્ઞાસુ ભાઈઓએ વાત 30-" महाराज! हम जैनी-धर्मा-चार्य के पास गये थे, उनकी बातोंसे उनकी उद्दात्त-प्रकृतिका परिचय पाया है, वे बडे मधुर-स्वभावके शांत प्रकृतिके महात्मा हैं, उन्होंने हमे जैनधर्मके बारेमें संक्षेपमें बहुत अच्छा समझाया-उनको सनातन धर्मके बारेमें भी काफी जानकारी है, तो हमारी नम्र अरज हैं कि आप अपने प्रवचनमें अपनी बात ढंगसे समझाइए, किंतु दूसरो पर कटाक्ष रूप एवं जैनधर्मके बारेमें आक्षेपात्मक बाते न कहें तो अच्छा । नाहक ही भोली-जनता धोखेमें पडतीं हैं और धर्मके नाम पर झमेला-बवंडर शायद उठ जाय, एसा हो तो हमारी शान्ति बिगडे !
संन्यासी म. मोत्या 3-" अरे ! तुम लोग तो निरे भोंदू हों! तुम लोग उधर गये ही क्यों! ऐसे नास्तिकों का मुंह देखना ही पाप हैं ! तुम उनकी चिकनी-चपटी बातोंकी लपटमें आ गये! क्या धरा है उन जैनोंमें ! जो लोग ईश्वरको नहीं मानते हैं ! मनमानी करके लोगोको धोखा देते हैं, उन जैन-साधुओंकी ढगोंसलेमें आप कहाँ फस
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