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महानुभावो ! हमारे साधु- आचार के अनुसार अब उदयपुर शहरमें अधिक आना या ठहरना उचित नहीं ! आप लोगों का धर्मप्रेम हमें जरुर खींचता है, किंतु आचारनिष्ठा साधुओंके लिए महत्त्वकी चीज है " माहि. श्रीसंधना मागवानो धुंडे - “महाराज ! आप तो आचारनिष्ठ हैं ही ! आप तो सलंग सात चौमासा कारणवश हमारे श्रीसं घके सौभाग्य से उदयपुर में किये, किंतु आप तो जलकमलवत् निप रहे हैं, आप किसीसे नाता जोडते ही नहीं ! शासन के लाभार्थे विचरनेवाले आप लोगों का पदार्पण हमारे श्रीसंघ के तो लाभ में ही रहा है !
अभी चौगान के मंदिरजी की व्यवस्था डामाडोल है ! जिनमंदिरों की अव्यवस्था न हो इसका ख्याल तो आपको भी करना जरुरी है ! इसके लिए अभी एक चौमासेकी और जरुरत है ! किंतु अभी तो हम आपश्री की निश्रामें चैत्री -ओलीजी की सामूहिक आराधना हो ! यह चाहते हैं। आपका जरूर पधारना ही पडेगा " माहि
પૂજયશ્રીએ ઘણી રીતે શ્રીસંઘના આગેવાનાને સમજાવ્યા, પણ છેવટે ચૈત્રી-એળી માટે હા પાડવી જ પડી અને વ ૧૧ ઉદયપુર તરફ શ્રાવકોએ વિહાર કરાવ્યા. વિહારમાં પગે ચાલતાં અનેક શ્રાવકો ગુરૂભક્તિમાં રહ્યા.
ફ્રા. વ. ૧૪ સવારે ઉદયપુરમાં પુનિત પ્રવેશ થયેા. વ્યાખ્યાનમાં શાશ્વત નવપદજીની ઓળીની આરાધનાના મહત્ત્વને પૂજયશ્રીએ ખૂબ સરસ રીતે સમજાવવા માંડ્યુ.
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