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- परंच रतलामका सरावरकारो कागद आयों थो, जीणी मधे श्रावकाय लीख्यो थो की आप छपाईथी सेवां पाथी झबेरसागरजी कहवे हे के " पाथी खोटी छपाई हे ओर हमोने आया सुण्या सों-आधी राते भागीने चला गया ! हमारा डरका मार्या ऐसी बात झबेरसागरजी लोकोने ऐणी मुजब कहे है ऐसा समाचार रतलामथी सरावकाय हमोने लीख्यो छे, सों या वात कीणी करे हे ? . और तुम हमारी छपाई पुस्तक खोटी कीणीतरे से बनाई है ! जीसका निर्णय उतारके हमारे कु. जल्दी से सिद्धांत के परमाण से लिखो और कदाचित कागल में तुमारे से नही लीखा जावे तो पीछा कागळ जल्दी से हमारा उपर लिखो सो हम वांचते कागळ जल्दी से रतलामकु
आवते हे. - सो पीछे हमारे से पेस्तर चर्चा करके पीछे पुस्तक खी तथा खोटी हमारे सामने पंडिता की सभा में आप करण। और हनारे से चर्चा किया,विगर पुस्तक खोटी छपाई ऐसा पेस्तर तुजारा मुख से कहेना नहि और ईस कागदका जवाब पोछा तुरत लिख दीजो भुलसो नहि..
संवत १९३८ का. महा सुद-६" ' मा पत्र ५२थी २५५८ थाय छे है ,, मुनि सोसायવિજયજીએ પિતાની ચોપડીમાં ક્યાં કયાં ભૂલ છે? તે શાસ્ત્રીયપાઠ સાથે માંગ્યું છે, અગર તે તમારે પત્ર આવ્યેથી હું જાતે રૂબરૂ આવી ચર્ચા કરીશ પંડિતની રૂબરૂ વિચારણા થયા पछी यापही साथी मोटी! ते २ थरी" वगेरे.
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