________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास
इसलिये वरीपुर और ग्वालियरकी आचार्य पट्टावलीसे लँवेचू समाजका घनिष्ट सम्बन्ध है और लॅवेचुओंने प्रतिष्ठा कराई श्री प्रतिमाओंके शिला लेखोंसे आचार्य भी सूरीपुर वटेश्वर ग्वालियरके ही सूचित होते हैं। श्री विश्वभूषणजी जगद् भूषणजीके शिष्यों में है । जिन्होंने इन्द्र ध्वज विधान तथा अनेक विधान ऋषिपाठ तथा चरित्रोंकी रचनाकी है । इन्हीं ग्वालियर के भट्टारकोंकी श्रीसम्भेद शिखरजीकी वीस पंथी कोठी है । दतिया में रूरामें जिनके बड़े-बड़े विशाल मन्दिर दुकाने जायदाद रही रूरा ग्राम ही जोगियोंका कहलाता है। वहां जिमीदारी भी भट्टारकोंकी है वहीं हरप्रसाद जती रहते हैं । अब अन्धे हो गये हैं। मैं उनके पास हो आया हूँ । झांसी से छोटी गाड़ी जालोन वहाँ से मोटर में रुरामल्लू जाते हैं । इन्द्रध्वज विधानमें मध्यलोकके ४५८ जिन मन्दिरोंके स्थान में कुम्हारसे ४५८ मन्दिर नवाकर ढाई द्वीपका नक्सा तेरह द्वीपका नक्सा मांडना मण्डल बनाकर उन मन्दिरोंको स्थापित कर इन्द्र इन्द्राणी का प्रतिष्ठित कर उन मन्दिरों पर ध्वजा चढ़वाते हैं और पूजन किया जाता है । इन्द्र ध्वजका ही भाषा पूजन तेरह
२४