________________
प्रमेय धोतिका टीका प्र.३६.८ सप्तपृ. घनोदण्याद ना तिर्यवाहत्यम् ५९ म भायाः पृथिव्याः 'घनोदधिलयरस' छ जोया बाहला ड्यो न बाहल्यस्य 'खेत्तच्छेएण छिज्जमाणरस' क्षेत्ररछेदेन छिद्यमानस्य 'अस्थि दवाई' सन्ति. द्रव्याणि 'वष्णमओ काल जाब' वर्णतः काल यादल वर्णतः काल्नीललोहितहारिद्र. शुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्धानि दुरभिगन्धानि, रसतः वित्तक टुकषायाम्ल म धुराणि, रपर्शतः क केश दुकगुरुकलघुक शीतोष्णस्निग्धरूक्षाणि, संस्थानतः परिमण्डल वृत्त यस चतुरस्सायातसंस्थानपरिणतानि अन्योन्यबद्धानि अन्योन्य स्पृष्टानि अन्योन्यावगाढानि अन्योन्यरनेहप्रतिबद्धानि, अन्योन्य घटतया द्रव्य है यह बात प्रकट करते हैं-'इमीले णं भंते !" इत्यादि । हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो घनोदधि चलब है कि जिसकी 'छ जोयण बाहल्लस्स' छ योजन की मोटाई है क्षेत्रच्छेद ले विभाग करने पर सद्गत द्रव्य 'वाओ काल जाव' क्या वर्ण की अपेक्षा कृष्ण वर्ण वाले नील वर्ण वाले, लोहिल-लाल वर्ण वाले, पीले वर्ण बाले और शक्ल धर्ण वाले होते हैं ? गन्ध की अपेक्षा के सुरभि दुरभिगाध बाले होते हैं ? रस की अपेक्षा तिक्त, फड, कषाय, अम्ल एवं मधुर रस वाले होते हैं ? स्पर्श की अपेक्षा वे ककश, स्मृदुक, गुरूक, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध, और रुक्ष पर्श वाले होते हैं क्या ? तथा संस्थान की अपेक्षा वे परिमंडल वृत्त पत्र चतुरस्त्र आयत संस्थान थाले होते हैं क्या? ये द्रव्य अन्योन्य पद्ध होते हैं क्या? अन्योन्य स्पृष्ट होते हैं क्या ? अन्योन्य अवगाढ होते हैं ? स्नेह गुण खे अन्योन्य बद्ध होते हैं क्या ? तथा वे अधिभक्त होकर ये अन्योन्य धन-समुदाय रूप १सय छ, 'छजोयण बाहालस्व' छ योजना वि छ. ना क्षेत्र छेध्या विमा ५२वामा मावेतो तभा २ द्रव्य 'वण्णओ काल जाव' વર્ણની અપેક્ષથી કૃષ્ણવર્ણવાળું પીળાવર્ણવાળું અને શુકલનામ સફેદ વર્ણવાળું હેય છે ? ગંધની અપેક્ષાથી સુરભિ દુરભિ ગંધવાળું હોય છે ? રસની અપેક્ષાથી તે તીખુ, કડવું તરૂ, ખાટું, અને મીઠારસવાળું હોય છે? પર્શની અપેક્ષાથી તે કર્કશ, મૃદુ, ગુરૂ, લઘુ, શીત ઉષ્ણ, સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ સ્પર્શવાળું હોય છે ? તથા સંસ્થાનની અપેક્ષાથી તે પરિમંડલ ગોળ ઝાલરાકાર વ્યસ ચતુર, આયત સંસ્થાનવાળું હોય છે? આ દ્રવ્ય અન્ય બદ્ધ હોય છે? અન્ય પૃષ્ટ હોય છે? અન્યૂન્ય અવગાઢ વાળું હોય છે ? મને હગુગથી અન્ય બદ્ધ હોય છે? તથા પરસ્પરમાં અવિભક્ત થઈને આ અન્ય ઘન સમુદાયપણાથી મળેલું રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને