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प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ २.२ २.२१ नारकाणां नरकभवानुभवननिरूपणम् ३०३ 'एग-महं अयपिंड' एक म्हान्तमयः पिण्डम् - कियत्परिमिमित्याह-'उदगवार समाण गहाय' उदकवारफसमानं मलपूर्ण लघुघटपरिमितं गृहीत्वा-समादाय 'त' तम् अयः पिण्डम् 'ताविय ताविय' तापयित्वा तापयित्वा 'कोट्टिय कोटिय' । देतो घनेन कुट्टयित्वा कुट्टयित्वा 'उमिदिय उभिदिय' उद्भिध उद्भिध-द्विधा द्विधा कृत्वा 'चुणिय चुणिय' चूर्णयित्वा चूर्णयित्वा तस्य सूक्ष्म सूक्ष्मतरपूर्ण कस्वा 'जहन्नेणं एगाहं वा दयाहं वा; तियाई वा जघन्येन एकाई वा, द्वन्यहं थी, ज्यहं वा, 'उकोसेणं अद्धमास' उत्कर्षणाद्धमासं-पञ्चदशदिनानि यावत् 'संहणेन्जा' 'एंगं महं अयपिड' एक षडे भारी लोहे के गोले को 'उदगवार समाण गहाय जल से भरे हुए छोटे से घोडे के समान लेकर 'तं ताविय २१ उसे पार २, अग्नि में सपावे तपाकर फिर वह उसे 'कोट्टिय.कोट्टिय' बार २, हथोडे से कूट-कूटकूटकर 'उभिदिय २' जब यह चौड़ा हो जाये तब उसे काटे-काटकर 'चुणिय' २, उसका चूर्ण करें-चूर्णकर 'जन्नेणं एगाहंवा दुयाया तियाहंवा कम से कम एक दिन दो दिन
और तीन दिन 'उकोसेणं' और अधिक से अधिक अद्धमास' पन्द्रह दिन-तक 'संहणेजा' इसी तरह से वह करता रहे-शर्थात् उस गोले को वह अग्नि में तपावे कूटे, चौड़ा करे, चूर्ण करे और फिर उसका गोला घनावे-इस तरह करने से वह एक बहुत ही अधिक मजबूत लोहे का गोला बन जावेगा बाद में उसे कम-से कम तीन दिन तक
और अधिक से अधिक पन्द्रह दिन तक ठण्डा होने के लिये रखा 'सारे मे मना गणार 'उद्गवारत्रमाणं गहाय' पाglथी स मे नाना घानी भ ने 'तं ताविय २' तेन वारपार मनिमा तपातपावन पछी त 'कोट्रिय कोट्टिय' पार पा२ स्थाथी धूट गने तेवी रीत टीन 'उभिदियर' ब्यारे ते पाणु थर्थाय त्यारे तन मन धान 'चुणियर' तेनु यू मनावे यु मनावीन. 'जहण्णेण एगाह वा दुयाहवा तिया. हवा' माछामा माछा मे हिपस में हिस, अने तर हिवस सुधा उक्कोसेणं' म अष्टया मेटले पधारेमा धारे 'अद्धमास' ५२ हिस सुधा 'संहणेज्जा' मा प्रभाये रत। २९ अर्थात् ते सामान त सुपारने छ। અગ્નિમાં તપાવે, ફરે, તેને પહેલું બનાવે ચૂકરે અને તે પછી પાછો તેને ગોળ બનાવે આ પ્રમાણે કરવાથી તે એક ઘણે મોટે અને મજબૂત લેખંડનો ગેળ બની જશે. તે પછી ઓછામાં ઓછા ત્રણ દિવસ સુધી અને વધારેમાં વધારે ૧૫ પંદર દિવસ સુધી તેને ઠંડે પાડવા રાખી મૂકવામાં આવે. આ