Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 880
________________ श्रीवामिगमसूत्रे ८५६ प्रसिद्धः, सौवस्तिक पुण्यमाणवी लक्षण विशेषौ लोकादेवाव गन्तव्यों, बर्द्धमानकं शराव संपुढं, मत्स्याण्डकमकराण्ड के कोरूपसिद्धे एव, जारमारेति मणेर्लक्षणविशेष लोकज्ञाप्यौ, पुष्पावलि पद्मवत्रसागरतरङ्गचासन्तीलता पद्मलठाः प्रसिद्धा एव वास पावल्यादि पद्मलतान्तानां भक्तचा विच्छिया चित्रैः आवर्त्तादि लक्षणो पेतेः, तथा - 'मच्छ, एहिं' सच्छाये:- विलक्षणच्छायायुक्तैः 'समरी पूर्हि' समरीचिकेः वर्गित किरण जालस हते, 'स उज्जो' सोधोत्तेः वह्निर्व्यवस्थित समीपवर्त्ति वस्तुस्त ममकाशकःरोधोतसहितैः एवम्भूतः 'नाणाविव नानाविधपश्च वर्णैर्विभिन्नजातीयपञ्चवर्णोपते:- तृणैर्मणिभियोपशोभितो पण्डर, तानेव पञ्चवर्णान् दर्शयतुमाह-जहा' इत्यादि, 'तं जहा' उद्यथा 'विण्हेहिं जान सुकिलेहिं कृष्णवर्णः यावत्पदेन नीललोहितपत संग्रह | एतान् पञ्चवर्णान् पृथक् पृथक् वर्णयति तत्र प्रथमं गौतमः कृष्णवर्णपिये पृच्छति श्रेणि निकली हुई होती है यह प्रश्रेणि है माथिये का नाम स्वस्तिक है, सौवनिक और पुष्यमाण ये दो लक्षणविशेष लोक से जानने योग्य है शराब का नाम वर्द्धमानक है स्याण्ड और मक कभी मविलक्षण विशेष है । और ये भी रत्न परिक्षकों से जानने योग्य है । जार मार भी हमी प्रकार के घषिलक्षणविशेष है और ये भी जोरो से जानने योग्य है । 'मच्छाहिं वतिरीहि म एहि नागाविणे' तथा ये तृग सगियां सुन्दर प्रति से युक्त 숨 | बाहर निकलती हुई कि जाल से है तथा बाहर यही हुई निकट की वस्तुनो के व के प्रकाश करने वाले उद्योन से युक्त है जिन पांच वाले तुम और नानाविधभूमि भागयुकमणियां कृष्णवर्ण, याद शुल्कवर्ण वर्णो से सुशोभित है यहां यावत्पद से नीललोहित और पीलवर्गो का ग्रहण ચાને સ્વસ્તિક કહે છે. નૌવસ્તિક ને પુ'યમ'વ એ બે શબ્દને અ લેક સમૂહથી જાણી લેવા. શરાન્સ પુટને વમાન્ક કહે છે મ રડે છે મકરાંડ એ ચિાના લક્ષણ વિષ છે અને એ તાની પક્ષ કરવાવાળા पांसेधी समल सेना, 'सच्चाएहिं समरीएहि सउज्जोएहि णानाविह पंच વળે'િ તથા આ તૃત્રુ અને માિ સુંદર કાતિથી યુક્ત છે બડા નીકળતી કિરણાળે થી યુક્ત છે તથા મહાર રહેલ સમીપની વસ્તુએના સમૂહને પ્રકાશિત કરવાવાળા ઉદ્યોત તેજથી યુકત છે. જે પચ વર્ણના ભૃગુ અને નાના પ્રકારના મણિથી એ ભૂમિભાગ ચુત છે, તે વણથી સુશેાભિત છે અહીંયાં યાવત્પદથી નીલ, ને મણુિ ખ્રુવ ય વત્ શુકલ લેાહિત, અને પીતવર્ણ , -

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