Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 906
________________ जीवामिगम पर्यन्त परिक्षिप्तस्य सह किंकिणीभिः क्षुद्रघण्टिकामिः वर्तन्ते इति स कि किणीकानि यानि हेमजालानि इसमयदामसमूहास्तैः सर्वासु दिक्षु पर्यन्तेपु बहिः प्रदेशेषु परिक्षिप्तो व्याप्त इति सकिंकिणीहेमजालपर्यन्त परिक्षिप्तस्तस्य तथा'हेमवयखेत्तचित्तविचित्ततिणिस कणशनिज्जुत्तदारुयागस्स' हैमवतक्षेत्रचित्रविचित्र तैनिशककनकनियुक्तदारुकस्य, हैमवतं क्षेत्र हिमवत्पर्वतमावि चित्रविचित्रं मनोहारिचित्रोपेत तैनिशं तिनिशदारुसंबन्धी कनकनियुक्तं कनकविच्छुरित दारुकाष्ठं यस्य स हैमवत् क्षेत्रचित्रविचित्र तैनिशकनकनियुक्त दारुकाष्ठम्तस्य, तथा-'मुषिणद्धारक मंडळ धुरागस्स' सुपिनद्धारकाण्डलधुराकस्य, मुष्ठ-अतिशयेन सम्यक् पिनदमरकमण्डलं धुरा च यस्य स सुपिनद्धारकमण्डलधुराकरतस्य, तथा-'कालायसमुकयणेमिजंतकम्मरस' काळायस सुकतनेमियन्त्रकर्मणः, कालायसेन जात्यछोहित सुष्टु-अतिशयेन कृतं नेमे वाहपरिधेर्यन्त्रस्य च-अरकोपरि फलकचक्र. वालस्य कर्म यस्मिन् स कालायस सुकृतनेमियन्त्रकर्मा तस्य, आइण्णवरतुरग'सणंदिघोसस्स' नन्दिघोष द्वादश तृयों के निनादों से युक्त हो 'सखिखिणि हेमजालपेरंतपरि खित्तरस' क्षुद्रघंटिकाओं से युक्त हैमीमालाओं द्वारा जो सघ ओर व्याप्त हो-'हेमवयरखेत्तचित्तविचिस. तिणिसकणगनिज्जुत्तदाख्यागस्स' तथा हिमवत पर्वत के तिनिश वृक्ष के काष्ठ से जो कि चित्रविचित्र-मनोहारि चित्रों से युक्त और सुवर्ण खचित पना हुआ है 'सुपिणिद्धारक मंडलधुरागस्त' जिसके पहियों में भारे यहुत ही अच्छी तरह से लगे हों तथा जिमकी धुरा बहुत मजबूत हो । 'कालायससुस्यणेलिजंत कम्मरम' चक्रकी धार जमीन की रगड से घिस न जावे तथा चक्र के पटिया आपस में अलग अलग न हो जावें इस अभिप्राय से जिसके पहियों पर लोहे की दन्तं मा प्रभावात सुं२-'थी युताय 'सणंदी घोसस्म' नाष भार तुश्याना अपान वाणी डाय 'सखिं खणिहेमजालपेरतपरिविखत्तस्स' नानी નાની ઘંટડિચેથી યુક્ત સુવર્ણની માળાઓ દ્વારા જે બધી તરફથી વ્યાપ્ત डाय छे. 'हेमवयरवेत्तचित्तविचित्ततिणिसकणागनिज्जुत्तदारुयागस्स' तथा हिमत પર્વતના તિનિશ વૃક્ષના લાકડાથી કે જે ચિત્રવિચિત્ર મને હારિ એવા सुंदर चित्रोथी युत मन सोनाना तारोथी भसा डाय 'सुपिणिद्धारकमडल धुरागस्स' रेना मां मारामा धola भताथी सारी amal जाय तथा नी धुरा-धरी ए भक्त हाय 'कालायमसुकयणमिजत कम्मरस' पानी धार ४भीनमा घसावाथी घसा न लय तथा पेडना assa એક બીજાથી જુદા ન પડી જાય એ હેતુથી જેના પર લોખંડની પાટી ચડાવ

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