Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 885
________________ प्रमैयद्यौतिका टीक्षा ... यू.५३ वनषण्डादिकवर्णनम् पतिपादनार्थमाह-'मणापतराए चेव' मन आमतरक एव, मनांसि आम्यन्तेआत्मवशतां नयन्ति-इति मन आमतरक एव तेषां तृणानां मणीनां च कृष्णो. वर्णावासः 'वण्णेणं पन्नत्ते' वर्गेन मज्ञप्त कथित इति । अथ गौतमो नीलवर्ण विषये पृच्छति-'तत्थ णं जे ते णीलगा तणा य मणीण य'तत्र-तेषां तृणानां मणीनां च मध्ये खलु यानि तानि नीलानि तृणानि ये ते नीला मणयश्च 'तेसि ण' तेषां खलु तृगानां मणीनां च 'इमेयाख्वे वण्णावासे पन्नत्ते किम् अयम्-अनन्तोदिश्यमान, एतावद्रूपः-वक्ष्यमाणस्वरूपो वर्णावास - वर्णनिवेशः पज्ञप्त:-कथितः ? तदेव दर्शयति-'से जहा णामए' त धथा नामकम् 'भिंगेइ वा भृङ्ग इति वा, भृङ्गः-(भिगोडी' इति प्रसिद्धः पक्षवान् लघुजन्तु विशेषः, "शियपत्तेइ वा' भृङ्गएत्रमिति बा, तस्यैव भृङ्गाभिधानस्य जन्तुविशेषस्य पक्षम 'चासेइ वा' चाप इति वा, चापः पक्षिविशेषः 'चासपिच्छे वा' चापपिच्छमिति वा, चापपिच्छं चापस्य पक्ष: 'सुपति वा' शुक इति वा. नीलवर्णः शुकः पक्षी 'सुपिच्छेइ वा शुशपिच्छमिति बा, 'णीलीति वा' नीली इति वा नीली 'नीळ' से 'रनोज्ञतार' पद निष्पन्न हो जाता है। इस तरह जो अतिशयरूप से मन के अनुकूल होता है वह मनोज्ञतर है। कोई २ मनोज्ञनर पदार्थ भी मध्यम होता है-अतः इन की कृष्णता से सवा कपंता प्रतिपादन करने के लिपित्त 'मणामनराएचेब' यह पद कहा गया है जो मन को अपने वश में कर लेता है, यह मनोऽम है यहां पर भी प्रकर्ष की विवक्षा तर प्रत्यय टुमा है । इस प्रकार के कृष्णवर्ण से युक्त यहां के मणि और तृण काहे गये है । अब श्रीगौतमस्वामी नीलवर्ण के विषय में पूजते है-'तस्थ णं भंते जीलगा तणा य सणीय' वहां पर जो नीलेवर्ण के तृण और मणि कहे गये तेलिणं हमेयारवे वण्णावासे पत्ते' उनका वर्णवास इस प्रकार कहे है क्या ? 'से जहानामए भिगेइ वा भिापता वा चासेड़वा, चासपिच्छेह का, सुएति वा स्तुयपिच्छेद वा, पीलीलिया, नीलीभेएह वा' जैसा नीला श्रृंग होता है जिसको મનેમ કહેવાય છે. અહીયાં પણ પ્રાર્ષની વિરક્ષામાં તર પ્રત્યય થયેલ છે. એવી રાતના કૃષ્ણ વર્ણ વાળા ત્યાંના મણિયે અને તૃણે હોય છે તેમ કહેલ છે. वे श्रीमतभस्वामी नीलवना समयमा प्रभुश्री२ पूछे थे 'तत्य गं भते णीलगा तणा य मणी य' त्यांनी १७ तृऐ। भने मरिया sal छ 'सि णं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' तेनु पन मा रीते तापामा मावतले से जहानामए भिगेइका भिगपत्तेइवा, चासेइबा चासपिच्छेइवा सुएइ वा सुयापच्छेइवा णीलीतिवा णीलीभेएइवा' । नील पनी हाय ,

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