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प्रद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सु.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम्
ગુરૂ
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प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम! 'छल्लेस्साओ पद्मत्ताओ' पड्लेश्याः प्रज्ञप्ताः - कथिताः 'तं जहा' तद्यथा - कण्हलेस्सा जाव सुकलेस्सा' कृष्णलेश्यायावच्छुक्लेश्याः अत्र यावत्पदेन नीलकापोततेजस पद्मलेश्यानां संग्रहो भवति, पक्षिणां द्रव्यतो भावतो वा सर्वा अपि लेश्या भवन्ति, तथाविधपरिणामसंभवादिति । 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! पक्षिणो जीवाः 'किं सम्मदिट्टि मिच्छादिट्टि सम्मामिच्छादिद्धि' किं सम्यग्दृष्टयो भवन्ति, अथवा मिथ्यादृष्टयो भवन्ति यद्वा सम्यग्मिथ्यादृष्टयः (मिश्रदृष्टया ) भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! 'सम्मदिट्ठी वि' पक्षिणः सम्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति 'मिच्छादिट्ठीवि' मिथ्यादृष्टयोऽपि भवन्ति, 'सम्मामिच्छादिट्ठीवि' सम्यग्मिथ्यादृष्टयः 'मिश्रदृष्टोऽपि भवन्तीति' 'ते णं भंते । जीवा' ते पक्षिणः खलु भदन्त ! कइलेस्साओ पन्नन्ताओ' हे भदन्त ! इन पक्षियों के कितनी लेइयाएं कही गई ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है भाव की अपेक्षा 'गोयमा ! छ लेस्साओ पन्नताओ' हे गौतम ! इन पक्षियों के छह लेश्याएं कही गई हैं । 'तं जहा' जैसे - 'कण्ह लेता जाव सुकलेस्सा' कृष्ण लेश्या, यावत् नीलेश्या, कापसा, तेजस बेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या इस प्रकार से पक्षियों के द्रव्य की अपेक्षा और भाव की अपेक्षा सभी श्याएं होती हैं। क्योंकि इनके इस प्रकार के परिणामों की संभवता है । 'ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्टी, मिच्छादिट्ठी' हे भदन्त ! वे जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते है ? या मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या 'सम्मानिच्छादिट्ठी' मिश्र दृष्टि होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! सम्मादिडी वि' वे सम्यग्दृष्टि भी होते हैं 'मिच्छादिट्टी वि' मिथ्या'एएसि णं भवे ! जीवाणं कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ' हे भगवन् मा यक्षिमने કેટલી લેશ્યાએ કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને 'गोयमा ! छ लेस्खाओ पण्णत्ताओं' हे गौतम! या पक्षिखाने छोश्याओ। हेवामां भावी है. 'तं जहा' भ४ 'कण्ड्लेस्सा जाव सुक्कलेस्सा' सॄष्णुसेश्या' नीससेश्या, अपोतदेश्या, तेभ्सलेश्या पद्मवेश्या, भने शुम्सलेश्या. આ પ્રમાણે પક્ષિઓને દ્રવ્યની અપેક્ષાથી અને ભાવની અપેક્ષાથી પણુ લેસ્યાએ होय. 'ते णं भंते ! जीवा कि सम्मदिट्ट' मिच्छादिट्ठी' हे भगवन् ते वा શું સમ્યક્ દૃષ્ટિ વાળા હેય છે ? કે મિથ્યા દૃષ્ટિવાળા હોય છે ? અથવા 'सम्मामिच्छादिट्ठी' मिश्रहृष्टिवाणा होय हे ? या प्रश्नमा उत्तरमां अनुश्री से छे } 'गोया ! सम्मद्धिट्टी वि' तेयो सभ्यगूहष्टिवाणा भालु होय हे 'मिच्छा दि