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जीवामिगम तरुणबोहिए आकोसायंत पउम गंभीर वियडणाभी' गङ्गावर्त प्रदक्षिणावर्ततरङ्गमगुररविकिरणतरुणयोधिताकोशायमानपझगम्भीरविकटनामयः, तत्र-गङ्गायाः आवतों विभ्रमः स इव दक्षिणावर्ताः न तु वामावतीः तरङ्गा इव तरङ्गास्तिस्रो वलयस्तभिभारा विच्छित्तियुक्ताः रविकिरणैस्तरुणैः योधित-विकासीकृतं सत् अकोशायमानं-विकची भवत् पद्म-कमलं तद्वद् गम्भीरा-गर्तबदुद्वेधयुक्ता विक्टा-विशाला च नाभिर्यासां तास्तथा, 'अणु० मड पसत्थपीण कुच्छी' अनुटपशस्तपीन कुक्षयः अनुद्भटो-अनुवौँ प्रशस्ती पीनौ कुक्षी यातां तास्तथा, 'सगपपासा' सन्नत. पाश्वाः 'संभयपासा' सङ्गतपाः 'सुजायपासा' सुजातपावाः, एतानि पदानि पूर्वव्याख्यात मनुजतिबद् व्याख्येयानि, 'मियमाइयपीण रइयपासा' मितमात्रिक पीनरतिदपाश्वाः, तत्र मिते-परमिते मात्रिके-मात्रयोपेते पीने-उपचिते रतिदेभीतिकरे पात्र यासां तास्तथा 'अकरंड यरूणगरुयग निम्मल सुजाय णिरुवाय. गायलट्ठी' अकरण्डककनकरुचक निर्मल-सुजात निरुपहतगात्रयष्टयः, तत्र अविद्यमान किरण तरुणवोहिय अशोसायंत पदण गंभीरविथडणाभी' गंगा की भौर के समान प्रदक्षिणावर्त वाली, त्रिवलि से भुग्न तथा मध्याह के रवि किरणों से विकसित हुए कमल के जैसी गंभीर एवं विशाल इनकी नाभि होती है 'अणुम्भडपसत्थ पीण कुच्छी' अतुल्वण-उग्रता रहित प्रशस्त, और पीन इनकी कुक्षि-उदर भाग होती है. 'सण्णयपासा' इनके दोनों पार्श्व भाग कुछ कुछ झुके हुए होते हैं । 'संगपपासा' अतएव वे संगत पार्श्व वाली और 'सुजायपासा' सुजात पार्च वाली होती है । इन पदों का विस्तृत अर्थ पहले आचुका है. 'मियमा इयपीण रइयपासा' इनके दोनों पाच मित-परिमित, अपने-अपने प्रमाण युक्त, पुष्ट और रतिप्रद-आनन्दवर्धक-होते हैं । 'अकरंडुयकणग
य छे. 'गंगावत्तपयाहिणावत्त तरंग भगुर रवि किरण तरुण वण्णेहिय अकोसायं तपउमवणगभीर वियडणाभी' गानी सम२-भजन २१ प्रहाक्षया વર્તવાળી ત્રિવલીથી યુકત તથા મધ્યાહનના સૂર્યના કિરણેથી વિકસિત થયેલા
भजना ननावी गली२ मते विशाल तेसानी नानी हाय छे. 'अणुभ इपसत्थ पीण कुच्छी' अनुमा यता विनानी प्रशस्त मन पान तयानी क्षी ४di S२ रु.य छ 'सण्णयपामा' तसाना भन्न पावलागी ४ ४ असा सराय छे. 'संगयपासा' मगेस पाश्ववाणी सोय छे. 'सुजातपासा' सुलताव पाणी डाय छे. २मा ५होना विरार पूर्व ने सथ ५i मावी गयेस छे. 'मियमा इय पीणरइयपासा' तयाना व ५७ भित परिभित पात बताना प्रमाणुथा युत पुष्ट भने मान भावावा डाय छे. 'अकरडुय कणगल्या