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प्रमैयद्योतिका टोका प्र.३ ३.३ ब्लू.४० ए० इन्द्रमहोत्सवादि वि. प्रश्नोत्तराः ६५३ रेणूइ वा' रेणुरिति-रजो बा, 'पंकेइ वा एक इति वा जलाविच कर्दमः 'चल णीइ वा चलनीति वा, चलनीचरणमात्रस्पर्शीदन एव, भगवानाह-'णो इणढे समठे' नायमर्थः समर्थः यतः एगोरुष दीवेणं दीधे' एकोरुक द्वीपे खल्ल द्वीपे 'वहुसमरमणिज्जे भूमिमागे पण्णत्ते सनणा उसो' बहुसमरमणीयः भूमिभागः मज्ञप्तः हे श्रमणायुष्मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुपदीचे दी' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'खाइ बा' स्थाणुरिति पा स्थाणुः - उत्खातितधान्यमूल मूर्ध्वकाष्ठं वा 'कंटएइ वा इण्टक इति या, 'होर९३ वा' होरकमिति वा, मची मुखकाष्ठविशेष?, 'सककराइ पा' शर्करा इति वा शर्करा लघु प्रस्तर खण्ड रूपा 'तणकर वराइ वा कृणक वर इति वा पत्तायवराइ वा' पत्र कचवर होते हैं क्या ? कि जहां पर थोडे पानी का कीचड़ हो ? क्या ऐसे
भी स्थान होते हैं जो धृलिकाले रेणुवाले एवं पङ्क-कीचड-काले हों तथा विजल-क्या ऐले भी स्थान होते हैं कि जिन में पैराम लिप्त हो ऐसे विना पानी का कीचड-झादध रहता हो ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'जो इजद्वे सलडे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नही है-अर्थात् यहाँ पर गर्त आदिबाले स्थान नहीं है क्योंकि-'बहुममरमणिज्जे भूमि भागे पण्णत्ते समजाउसो' हे अक्षण आयुगमन । वहां का भूमिभाग बहुसम-समतल और रमणीय कहा गया है। 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दी हे भदन्त ! एकरुक नाम के द्वीप में 'खागृह था' क्या स्थाणु-उखाडे गये धान्य का सूल टूठ होता है ? 'कंटएइ था' कंटक होते हैं ? 'हीरएति बा' हीक-जिसका मुख शचि के सुख के जैसा तीक्षा होता ऐसा काष्ठविशेष-होता है क्या ? 'सकराति वा' પાણી વાળો કાદવ હોય એવા સ્થાને હોય છે ? જે ધૂળ વાળા રેતવાળા અને કાદવવાળા હોય એવા સ્થાને હોય છે ? અને જેમાં પગ મૂકવાથી બગડે એવા પણ વિનાને કાદવ હોય તેવા સ્થાને હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तर प्रभुश्री गौतमत्वामीन छ, 'णा इणट्रे समटे गौतम! ॥ म समय नथा. अर्थात् त्यो मापा स्थान होता नथी म 'बहु समरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते समणाउसो' श्रम गायुष्मन् । त्यांना मूभिमाय मसम 0 स२ । सने २मय सुह२ हाय छ 'अस्थि णं भंते ! एगोरुअ दीवे दीवे'
भगवन् ! 11३४ नामना दीपभा 'खाणूडया' जमानामा सात धान्यना भूण ४॥ य छे ? 'क टरबा' ट! हाय ? हिरएइका' डी२४-२ना म. ભાગ સોઈની અણી જે તીક્ષણ હોય એવું એક જાતનું કાષ્ઠ વિશેષ હોય છે? 'सकराइवा' नाना पथ्थराना ४४ ३५ सा४२ हाय ? 'तण कयवराइवा'