________________
जीवाभिगमस्त्रे द्वीप आयामविष्कम्भेण चत्वारि योजनशतानि द्वादशएश्चपष्टानि योजनशतानि किश्चिद्विशेषाधिकानि परिक्षेपेण, पद्मवरवेदिका वनषण्डमनुष्यादि स्वरूपं च सर्वमपि एकोकोपवज्ज्ञातव्यम् । 'आयसमुहाणं पुच्छ।' आदर्श मुखानां पृच्छा' हे भदन्त ! दाक्षिणात्यानामादर्शमुखमनुष्याणां कुत्र आदर्शमुखनामको द्वीपः प्रज्ञप्तः, इति प्रश्नः, भगवामाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'हयकण दीवस्स' हयकर्ण नामकद्वीपस्य 'उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओं' उत्तरपौरस्त्यात् चरमान्तात् 'पंचजोयणसयाई ओगाहित्ता' पञ्चयोजनशतानि लवणसमुद्रमवगाह्य 'एस्थ णं दाहि. जिल्लाणं आयंसमुहमणुस्साण' अत्र खलु दाक्षिणात्यानाम् आदर्शमुखमनुष्याणाम् 'आयसमुहदीवे णामं दीवे पन्नत्ते' आदर्शमुखद्वीपो नासद्वीपः प्रज्ञप्तः 'पंचजोयण. सपाई आयामविक्खं भेणं' स चादशेमुखद्वीपः आयाविष्कम्भेग पञ्चयोजनशतानि के अन्तर में दाक्षिणात्य शष्कुली कर्ण मनुष्यों का शष्कुलीकर्ण नामका द्वीप कहा गया है। यह शकुलीकर्ण डीप चार सौ योजन का लम्बा चौड़ा है। इसकी परिधि कुछ अधिक वारह सौ पैसठ योजन की है।
शेष वर्णन एकोक दीप के प्रकरण जैसा जानना चाहिये ? __ 'आयंसमुहाणं पुच्छा' हे भदन्त ! आदर्श मुख मनुष्यों का आदर्श मुख नानको बीप कहाँ पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है। हे गौतम 'हयकपणदीवस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ परिमं. ताओ पंचयोजणसयाई ओगाहित्ता एत्थणं दाहिणिल्लाणं आयंसमुह मणुस्साणं आयंसमुहदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' हयकर्ण द्वीप के ईशान कोने के घरमान्त से लवण समुद्र में पांच सौ योजन प्रविष्ट होने पर वहां ज्यागत स्थान पर दक्षिण दिशा के आदर्श मुख मनुष्यों का भादशे मुख नामका द्वीप कहा गया है। यह द्वीप 'पंचजोयणसयाई દ્વીપ કર્યો છે આ શખુલીકર્ણદ્વીપ ચાર જનની લમ્બાઈ પહોળાઈ વાળે છે. તેની પરિધિ કઈક વવારે બારસો પાંસઠ એજનની છે. બાકીનું વર્ણન એરૂક દ્વીપના પ્રકરણ પ્રમાણે સમજવું.
'आयसमुहाणं पुच्छा' 8 सन् माइश भुम मनुष्यानो माइश भुम નામને દ્વીપ ક્યાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે छे 'गोयमा ! हयकण्णदीवस्व उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पंचजोयणसयाई ओगाहिता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं अयंसमुहमणुस्साणं आयंसमुहदीवे णाम दीवे पण्णत्ते' ६ गीतमा दी५ शान भूएनय२मान्तथी सवसमुद्रमा પાંચસો જન પ્રવેશ કરવાવી ત્યાં આવેલ સ્થાન પર દક્ષિણ દિશાના આદર્શ मनुष्यानो माइश भुम भने। दी५ हो . ! दीपनी 'पंच जोयण सयाई