Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 823
________________ haufont टीका प्र.३ ७.३ सू०५१ द्वीपसमुद्रनिरूपणम् इति तेल विशेषणम्, तैलापूपस्येव यत्संस्थानं तेन संस्थित इति तेलापूपसंस्थान संस्थितः । पुनश्च 'वट्टे' वृत्तः कीदृशो वृतस्तत्राह - 'रह चक्कवालसंठाण संfoe' रथचक्रचाळसंस्थानसंस्थितः, स्थस्य रथाङ्गस्य चक्रस्य अवयवे समुदायो पचारात् चक्रवालं मण्डलं तस्येत्र यद् संस्थानं तेन संस्थित इति रथचक्रवाल संस्थानसंस्थितः । पुनरपि 'बट्टे' वृचः कीदृशः ? तत्राह - 'क्खरकण्णियासंठण संठिए' पुष्करकर्णिका संस्थानसंस्थितः, तत्र पुष्करकर्णिका पद्मवीजकोशस्तमदृशो वृत्तः । पुनश्च 'वटूट्टे' वृत्तः कीदृश इत्याह- ' षडि पुन्नचंद सेठाणसंठिए' परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः परिपूर्णचन्द्र:- पूर्णिमाचन्द्रस्तद्वद्वृत्तः । एतेन जम्मूद्वीपस्य संस्थानं कथितमिति । सम्पति जम्बूद्वीपस्याऽऽपशमादिपरिमाणमाह'एक्i' इत्यादि, 'एक्कं जोयणसय सहस्सं आयामविवखंभेणं' एकं योजनशत'वटूटे रहचक्कवालसंठाणसंठिए' मुत्रकार ने यह दूसरा भी सूत्रपाट कहा है अर्थात वह जम्बूद्वीप ऐसा गोल है, जैसी कि रथ के पहिये की गोलाई होती है रथ से वहाँ अवयव में समुदाय के उपचार से रथकाअङ्ग - चक्र-पहिया लिया गया है 'बटूटे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए' यह जम्बूद्रीप ऐसा गोल है की जैसी पुष्कर कमल की कलिंका होती है । गोलाई प्रकट करने के लिये यह तृतीय उपमान पद है अथवा 'टूटे पडिपुण्ण चंद संठाणसंठिए' चतुर्थ उपमान परिपूर्ण चंदमंडल है । जैसा परिपूर्ण पूर्णिमा का चंद्रमंडल अपनी गोलाई में व्यवस्थित रहता है, उमी प्रकार की गोलाई वाला यह जम्बूद्वीप है इस कथन से जम्बूद्वीप का संस्थान प्रकट किया गया है । अथ इसका आयामादि प्रना प्रकट करते है 'एक्कं जोयणसयसहस्रूं आयामविकखमेणं तिष्णि जीयणसय सहस्साई सोलस य सहस्ताई दोणि य सत्तावीसे जोरण - ७९९ સ”િ અર્થાત્ આ જ બુદ્વીપ એવા ગાળ છે કે જેવી ગાળાઇ રથના ચક્ર પેંડાની હાય છે. રથથી સમુદાયના ઉપચારથી રથનુ' અંગ ચક્ર પેડુ ગ્રહણ કરેલ છે 'वट्टे पुक्खरकणिया सठाणस ठिए' मा यूद्रीय गोवा गोज छे ! केवी ગાળાઈ પુષ્કર કમળની કળિની હાય છે ગળાઈ બતાવવા માટે આ ત્રીજુ उपभानयः उडेस छे अथवा 'वट्टे पुण्णचंद 'ठाण सठि' हे परिपूर्ण પૂર્ણિમાનુ' ચંદ્ર મડળ ગાળાકારમાં વ્યવસ્થિત હાય છે એજ પ્રમાણેના ગોળ આકાર વાળા આ જખૂદ્વીપ છે. આ રીતે પરિપૂર્ણ ચંદ્રનું આ ચે શુ' ઉપમ’ન પદ કહેલ છે. આ કથનથી જ ભૂદ્રોપત્તુ' સરથાન બતાવેલ છે. હવે તેના भायाम विगेरेनु प्रमाणु बताये थे. 'एक्क जोयणमयमहस्स आय मक्सिंभेण तिष्णि जोयणसयसहस्स्राई सोलस य सहस्साई दोण्णिय सतावीसे जोयणसए

Loading...

Page Navigation
1 ... 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924