Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 836
________________ जीवाभिगमसूत्रे વાર कंत्रास्थानीयाः, 'जायरूपमईओ ओहाढणीओ' जातरूपं सूदर्णविशेषः तन्मय्यः अवघाटिन्यः आच्छादन हेतु कंचोपरि स्थाप्यमान महायमाण किळिंच स्थानीयाः 'वरामईओ उafi yaणीओ' वज्रमय्यो बजानात्मिका अदघाटनीनामुपरि पुंछम्यः निविडतरच्छादन हेतुश्लक्ष्णतरण विशेषस्थानीयाः, तत्र अवघाटनी महती, क्षुल्लिकातु पुच्छनी, इत्येव उभयोर्भेदः 'सव्वसेए स्वयामर छायणे' सर्वश्वेतं रजतमयं छादनम् सर्वश्वेतं रजतमय पुंछनीनामुपरि कवेल्लुकानामध आच्छादनमिति || ' साणं परमवरवेश्या' सा खलु उपर्युक्ता पद्मवरवेदिका 'एगमेगेण हेमजालेणं' एकैकेन हेमजालेन सर्वात्मना हेममयेन लम्बमानेन लम्बमानेन दामसमूहेनेत्यर्थः ' एगमेगेणं गवक्ख नालेण' एकैकेन गवाक्षजालेन गवाक्षाकृति रत्नविशेषदायसमूहेन 'एगमेगेणं खिखिणी जाले गं' एकैकेन किंकिणी जालेत, किंकिण्यः- क्षुद्रघण्टिकाः, तथा चैकैकेन सुघण्टिका जालेनेत्यर्थः ' एगयेगेणं मुत्ताजालेणं' एकैकेन मुक्ताजालेन मुक्ताफलमयेन दामसमूहेन ' एगमेगेगं मणिजालेगं' एकैकेन मणिजालेन मणिमयेन दामसमूहेन है । ढक्कन है वे जातरूप की बनी हुई है 'वहरामइओ उवरि पुंछणीओ' इन ढक्कनों के ऊपर जो पुञ्छनी है - ढक्कनों के छेदों को चंद करने के लिये जो उनके ऊपर इलक्ष्णतर तृणविशेष के स्थानापन्न और ढक्कन है । जैसा कि घास के छापराओं के उपर बने रहते है-वे वज्ररत्न की है अघाटी वडी होती है और पुंछनी इसी प्रकार की छोटी होती है यही इन दोनों में अन्तर है। 'सव्वसेए रघघामए छापणे' पुंछनोयों के उपर और कवेल्लुओं के नीचे जो आच्छादन है वह रजत मय-चांदी का बना हुआ है। ऐसी यह वेदिका है 'सा णं परमवरवेश्या एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगे णं गवखजाले एगमेगेणं खिखिणिजा लेणं एगमेगेर्ण मुत्ताजालेणं, एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणघजा 'जातरुवमयी ओ ओहा उणीओ' मामाने ढांडवा भाटे तेना उपर के अवधटिनि ढांड हे ते ३५ रत्नानी भनेसी छे. 'वइरामइओ उवरि पुळणीओ' એ ઢાંકણુની ઉપર જે પુચ્છની ઢાંકણુના છિદ્રોને ખધ કરવા માટે તેના ઉપર જે શ્રૃગુતર તૃણુ વિશેષના સ્થાને ખીજા ઢાંકણુ છે જેમ ઘાસના છાપરાએ ઉપર બનાવેલા હાય છે તે વા રત્નેાના છે. અવઘાટણી મેાટી હાય છે, અને પુછી તેનાજ જેવી નાની હાય છે. એટલુ એ મન્નેમાં અંતર-જુદાઇ है. 'वन्यसे रययामए छायणे' पुंछ योनी उपर मने सुनी नीचे આચ્છાદન ઢાંકણુ છે તે રજતમય ચાંદીના બનેલા છે. એવી તે વેદિકા છે. 'माणं परमवरवेडया एगमेगेणं हेमजालेगं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिखिणिजालेन एगमेगेण मुचानालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणय

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