Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 839
________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ ७.५२ जगत्या पनवरवेदिकायाश्चवर्णनम् ८१५ भानानि प्रलम्बमानानीति । 'पझंझमाणा पझंझमाणा' परस्परसंपर्कतः शब्दायमानानि शब्दायमानानि तानि जालानि सन्तीति, ते णं ओरालेणं मणुण्णेण' तेन-हेमजालादि जनितेन खलु उदारेण स्फारेण शब्देन, स च स्फारशब्दो मनः प्रतिकूलोऽपि कदाचिद्भवेत् तव आइ-'मणुण्णेण' मनोऽनुकूलेन तच्च मनोऽनुकूलत्वं लेशतोऽपि भवतीत्यत आह-'मणोहरेणं' मनोहरेणं मनोहरेण मनांसि-श्रोतृणां चेतांसि हरति-स्वायत्ती करोतीति मनोहरस्तेने अतएव 'कृण्ण मणिन्धुडकरण' कर्णमनोनिवृत्तिकरण, श्रोतृकर्णयोर्मनसश्च निर्वृत्तिकरः सुखविशेपोत्पादक तस्मादेव कारणान्मनोझो मनोहरश्चेति तेन तादृशेन 'सद्देण' शब्देन 'सवओ' समंता आपूरैमाणा' सर्वतः सर्वासु दिक्षु, समन्तात् सर्वासु विदिक्षु अपूरयन्ति, अतएव 'सिरीए अतीव उवसोभेमाणा चिति' श्रिया-शोभया अतीव-अतिशयेनोपशोभमानानि तानि जालानि तिष्ठन्तीति । 'तीसे णं पउपवरवेइयाए' तस्याः उधर पसर जाते है और आपल में 'पझंझमाणा' एक दूसरे से टकरा २ कर शब्दायमान ध्वनिवाले होने लगते हैं 'ते णं आरालेणं मणुण्णे णं कण्णमणणिन्वुहकरेणं सद्देणं सन्चो समंता आपूरेसाणा लिए अतीव उवसोभेमाणा चिट्ठति' इस अवस्था में उनसे निकला हुआ वह शब्द कर्ण और मनको बहुत सुख विशेष का उत्पादक होता है क्योंकि वह शब्द बड़ा ही मनोज्ञ होता है-समस्त दिशाओं और विदिशाओं में वह भर जाता है अतएव उस शब्द की सुन्दरता से वे जाल अत्यन्त शोभित होते रहते हैं। 'तीसे ण प उभवरवेश्याए तत्थर देसे तहि तहिं वहवे हयसंघाडा, गयसंघाडा नरसंघाडा किगरसंघाडा, किं पुरिससंघाडा' उस पदमवरवेदिका के भिन्न भिन्न स्थानों पर कहीं पर अनेक हयसंघाट उत्कीर्ण है यहां संघाट शब्द लाधु संघाडे की तरह छ. म ५२२५२ 'पझझमाणा पझझमाणा' से भीतनी साथे 2४२।४ 23२।४२ शायमान २६४१२ पापा थ७ तय छे. 'ते ण ओरालेणं मणुण्णेणे कण्णमण निव्वुइकरेणं सदेणं सव्वओ समता आपूरेमाणा सिरीए अतीव उवसोभेमाणा चिट्ठति' मा शत माथी नाणे ये श६ अन मन भनने पर सुम વિશેષના અનુભવ કરાવનાર નિવડે છે. કેમકે એ શબ્દ ઘોજ મનોજ્ઞ હોય છે. સઘળી દિશાઓમાં અને વિદિશાઓમાં તે ભરાઈ જાય છે. તેથી જ એ शहना २पाथी से समूड सत्यत शालायमान थत। २९ छे. 'तिसेणं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहि तहिं बहवे हयस घाडा, गयसंघाड़ा नरसंघाडा, किण्णरसंघाडा कि पुरिससघाडा' थे ५१५२ वहाना तु पु स्थान પર કયાંક કયાંક અનેક પ્રકારના હયસંઘાટ ઘોડાના યુગ્મ ચિન્નેલા છે.

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