Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 876
________________ जीवामिगम अथास्य चनपण्डस्य भूमिभागो वर्ण्यते - ' तस्स णं' इत्यादि, 'तस्स णं वणसंडग्स' तस्य खलु वनपण्डस्य 'अंतो बडुममरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' अन्तर्मध्ये बहुसमःसन रमणीयो मनोज्ञ इति बहुसमरमणीयो भूमिभागः मज्ञप्तः कथितः कि विशिष्ट. सः १ इत्याह- 'से जहाण (मए' इत्यादि, 'से जहाणायए' तद्यथा नामकः 'आलिंगनुखरे या' आलिङ्ग पुष्करमिति वा, आलिङ्गो गुरजो बायविशेषस्तस्य पुष्करचर्मपुर के तत्कलात्यन्तसमं भवतीति वेनोपमा क्रियते - सर्वत्रसर्वेऽपि इति शब्दाः समुच्चये 'मुइंगपुक्खरे वा' मृदङ्गपुष्करमिति वा, मृदङ्गो लोकप्रसिद्धो वाद्यविशेषस्तस्य पुष्कर मृदङ्गपुष्करमिति । 'सरतले प्रतिरूप है हन पदों का अर्थ पहले आचुका है । अब इस बनखण्डकेभूमिभागका वर्णन करते है 'तरुणं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमनिज्जे भूमि पण्णत्ते' इस वनखण्डका जो भीतरका भूमिभाग है यह बहु सम है बिलकुल बराबर एकता है ऊंचा नोचा नहीं है किस प्रकार का यह सम भूमिभाग है इसको अलिङ्ग पुष्कर आदि उपमाओं से बनाते है 'से जघानामए अलिंगपुक्खरेति वा' इत्यादि । वह भूमिभाग ऐसा प्रतीत होता है कि जैसा, आलिङ्ग पुष्कर होना है आलिङ्ग नाम मुरज वाद्यविशेषका हैं तथा इसके उपर जो चमडा मडा रहता है उसका नाम पुष्कर है । यह आलिङ्ग पुष्कर अत्यन्त मम होता है इसी तरह वहां का वह भूमिभाग मृदङ्ग के पुष्कर जैसा अत्यन्तलम है मृदङ्ग लोकप्रसिद्ध एक प्रकार का वाद्यविशेष है, इसका भी पुष्कर बिलकुल मन होता है ऊंचा नीचा नहीं होता है इसी प्रकार परिपूर्ण દનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ છે. આ પદેના અથ પહેલા આવી ગયેલ છે. हवे आ वनमंडना भूमिभागनुं वन वामां आवे छे 'तस्स णं वनखंड अतो बहु समरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' या वनखंडनी अहरना જે ભૂમિભાગ છે, તે છેૢા સમ છે, બિલ્કુલ ખરેખર એક સરખે છે, 'ચા નીચા નથી કેવા પ્રકારના એ સમભાગ છે તે આલિ’ગ પુષ્કર વિગેરેની ઉપમાએ द्वारा जतावे छे. 'से जहा नामए आलिंगपुक्खरेति वा' त्यिाहि मे भूमिभाग એવા જણાય છે કે જેવું લિંગ પુષ્કર હાય છે, આ આલિંગ નામ મુરજ વ દ્યવિશેષનુ છે, તથા તેના ઉપર જે ચામડું મઢેલુ હાય છે, તેનું નામ પુષ્કર છે. આ આલિ’ગપુષ્કર ઘણેાજ સમ–સરખા હાય છે એજ રીતના ત્યાંના તે ભૂમિભાગ મૃદંગના પુષ્કર જેવા સમ-સરખા છે. મૃગએ લેક પ્રસિદ્ધ એક પ્રકારનું વાઘ વિશેષ છે, તેનુ પુષ્કર પણુ બિલ્કુલ સરખુ હાય છે, ઉંચુ’ નીચુ હેતુ નથી. એજ રીતે પરિપૂર્ણ પાણીથી ભરેલ તળાવની ઉપરના ભાગ ८५३

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