Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 861
________________ प्रमेयोतिका टीका . है . . ५३ वनपण्डादिकवर्णनम् ८३७ 'देणाई दो जोयणाई चक्रवाल विक्खभेणं' सचैकैको वनपण्डो देशोने द्वेोजने चक्रवालविष्कम्भेण 'जगती समए परिवखेत्रेण' जगती समको जगत्याः समानः परिक्षेपेण, स च चनपण्ड: परिक्षेपेण जगती परिमाण इत्यर्थः । स च वनपण्डः कथं भूतस्तत्राह - 'किण्हे' इत्यादि, 'किण्हे' कृष्णः छाया प्रधानत्वात्, इह खलु वृक्षाणां प्रायो मध्यमे वयसि वर्त्तमानानि पत्राणि नीलत्वाहुल्येन कृष्णानि भवन्ति तादृशपत्र संलब्धत्वात् वनपण्डोऽपि कृष्णः । न चोपचारमात्रस्वाद् वनषण्डः कृष्ण इति व्यवह्रियते किन्तु कृष्णरूपेणावभासमानत्वात्कृष्ण स्तत्राह - 'किण्दोभासे' कृष्णावभासः, यावत्के भागे कृष्णानि पत्राणि सन्ति arach भागे स बनवण्डः कृष्णोऽनभासते, अतः कृष्णोऽवभासो यस्य स कृष्णाव भासो वषण्ड: 'जाव अणेग सगडरह०' इत्यादि, अत्र यावत्पदनाद्याणि पदानि यथा - 'नीले नीलोमासे इरिए हरिओमा से सीए सीमोमासे जिद्धे णिदोभासे दो जोयणाई चक्कवालचिक्ख मेणं जगती समर परिक्खेवेण' यह वन खण्ड कुछ कम दो योजन का है और इसका चक्रवाल विष्कम्भ जगती के चक्रवाल विष्कम्भ के जैसा है वह वनखण्ड किस प्रकार का है उसका वर्णन करते है० 'किन्हे किन्होमासे जाब अोग लगडरह० ' इत्यादि । छाया प्रधान होने से यह वनखण्ड कृष्ण है वृक्षों के प्रायः - मध्यमवत्र में वर्तमान पत्र नील रोने है इस कारण ले उस वनखण्ड को कृष्ण कहा गया है क्यों कि इस अवस्था में वह कृष्ण रूप से अवभाति होता है वही मान 'किन्होभासे' इस पद द्वारा सूचित हुई है। जितने भाग में उल बनवण्ड में कृष्ण पत्र है उतने भाग में वह बनखण्ड कृष्णरूप से प्रतिभासित होता है । यहां यावत्पद से जिन विशेषणों का ग्रहण हुआ है उन विशेषणों की व्याख्या इस 'देसूणाई दोजोयणाई' चक्कालवित्रख भेणं जगती समए परिवखेवेणं' भावन ખડ કઈક કમ ચેાજનના હૈાય છે. અને તેનુ ચક્રવાલ ત્રિષ્કલ જગતીના ચક્રવાલ વિષ્ણુભની જેવા છે. તે વનખ'ડ દેવા પ્રકારના છે? તેનુ હવે સૂત્રકાર वन रे छे. 'किन्हे किन्होभासे जाव अणेग सगड़ २६०' इत्यादि छाया प्रधान હાવાથી આ વનખંડ કૃષ્ણ વ તુ છે. વૃક્ષાના પત્રા પ્રાયઃમધ્યમ અવસ્થામાં વત માન હૈાય ત્યારે નીલવણુ તુ' હાય છે. આ કારણથી એ વનખડને કૃષ્ણ કહ્યુ છે. કારણકે એ અવસ્થામાં તે કાળા વણુ થી શેાભાયમાન હાય છે, એજ વાત 'किण्होभासे' से पढ़ द्वारा सूयवेस छे भेटला लागभां से वनभां પત્રા હાય છે એટલા ભાગમાં એ વનખંડ કૃષ્ણવ થી પ્રતિભાસિત થાય છે. અહિયાં ચાપદથી જે વિશેષશેાના સથઢ થયા છે, એ વિશેષશેાની વ્યાખ્યા

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