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मीवाभिगमसूत्र प्रज्ञप्तः, एवम नेकविधद्रुमोपेतवनस्य पदमबरवे दिशाया वनपण्ड च वर्णनमेको. रुद्वीप नदेव विज्ञेशमिति १६९ ____'एवं गोक्षणमणुस्सा णं पुच्छा' हे भदन्त ! दाक्षिणात्यानां गोकर्णमनुष्याणां गोकर्णनामको द्वीपः प्रज्ञात इति मश्नः, भगवानाह-'गोमा' हे गौतम ! 'वेसाणियदीपस्स' पाणिक (वैशालिक) द्वीपस्य दाक्षिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ' दक्षिणपाश्चात्यात् चरमान्तात् चत्वारि योजनशतानि 'सेसं जहा हयभणाण' शेषं सर्व प्रकरणं यथा हयकर्ण मनुष्याणां तथैवात्र निज्ञेयम् तथाहि करणसमयमाह्यान्तरे क्षुल्लाहिमवदंष्ट्राया उपरि जम्बूद्वीप वेदिक्षान्ताद चतुओंजनशलान्तरे गोकर्णमनुष्याणां गोकर्णद्वीपो नापद्वीप: ममता, स च चत्वारि योजनशतानि मायामविष्कम्भेग द्वादशपञ्चपप्ठानि योजनशतानि किश्चिद्विशेषाधारह सौ पैलट योजन की इसकी परिधि है यदी पर भी एकोरुक द्वीप की तरह एमबर वेदिका है और धनग्यण्ड है इन का वर्णन सब एकोहरु द्विप के जैसा ही है। ___एवं गोकपणमणुस्साणं पुच्छा' 'हे भदन्त' दक्षिण दिशा के गोकर्ण अनुष्यों का गोकर्ण नामका द्वीप शहाँ पर है। इसके उत्तर में प्रनुश्री फाहते है । 'गोयमा' माणियदीवस्त दाक्षिणपच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं चत्तारि जोयणसयाइं सेसं जहा हय क गाणं' हे गौतम वैषाणिक द्वीप के दक्षिण पाश्चात्य चरमान्त से चार सो योजन लवण समुद्र में घुस जाने पर आगत क्षुद्र हिमवान पर्वत की दाढा पर जम्बूद्वीप की वेदिका के अन्त से चार लो योजन के अन्तर में गोकर्ण मनुष्यों का यह गोकर्ण नामका द्वीप कहा गया है। यह द्वीप भी चारलौ योजन का लम्बा चौड़ा है और कुछ अधिक थारह તેની પરિધિ છે અહિયાં પણ એકરૂક દિપની જેમ પાવર વેદિકા છે. અને 'વનખડ છે. તેનું તમામ વર્ણન એકરૂક દ્વીપના વર્ણન પ્રમાણે જ છે.
'एब गोकण्णमणुस्साणं पुच्छा' ॐ साप! इक्षिण हिशाना : મનુષ્યને ગોકર્ણ દ્વીપ કયાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वाभान ४ छ त 'गोयमा ! वेसाणियदीवस्स दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरि. म ताओ लवणसमुद्द चत्तारि जोयणसयाइ सेस जहा हयकग्णाणं' है गीतमा વૈષાણિક દ્વીપના દક્ષિણ પશ્ચિમના ચુરમાન્સથી ચારસે જન લવણ સમુદ્રમાં જવાથી ત્યાં આવેલ સુદ્રહિમવાનું પર્વતની દાઢા પર જમ્બુદ્વીપની વેદિકાના અન્તથી ચારસે એજનના અંતરમાં ગોકર્ણ મનુષ્યોનો આ ગોકર્ણ નામનો દ્વિીપ કહેલ છે. આ દ્વિીપ પણ ચારસો જનની લમ્બાઈ પહેળાઈ વાળે છે.