Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 817
________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५१ द्वीपसमुद्रनिरूपणम् दीपसमुद्राणा मायादि परिमाण विषयस्तृतीयः प्रश्नः, 'कि संठियाणं भंते ! दीवसमुदा' कि संस्थिताः खल भदन्त ! द्वीपसमुद्राः, किं कीदृश संस्थितंसंस्थानं येषां ते कि संस्थिता इति संस्थानविषयकः चतुर्थः प्रश्नः, 'किमागार भावपयोडाराणं भंते ! दीवस मुद्दा पन्नत्ता' किमाकारभारप्रत्यवताराः खलु भदन्त ! द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ताः, आकारभाव स्वरूपविशेषः कस्याकारभावस्य मत्य. वतारो येषु ते किसाकारभावमत्यवतारा इति द्वीपसमुद्राणां स्वरूविषयका पञ्चमप्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा इत्यादि, 'गोयसा' हे गौर म ! 'जंबुद्दीवाइया दीवा ळवणादिया समुदा' जम्बूद्वीपादिका द्वीपाः, जम्बूद्वीप आदि र्येषां ते जम्बूद्वीपादिकाः जम्वृषभृतयो द्वीपा इत्यर्थः, लवणादिकाः समुद्राः लवणसमुद्र आदि येषां ते लवणसमुद्रादिका:-लमणसमुद्रपभृतयः समुद्रा इत्यर्थः एतारता प्रमाणके सम्बन्ध में है। 'कि मठियाणं भंते' दीवसमुद्दा' उन द्वीप समुद्रों का हे भदन्त ! संस्थान आकार कैसा है ? यह उनके संस्थान के विषय में प्रश्न है। तथा-'किमाकारभाव पडोधारा णं भंते दीव समुद्दा पन्नत्ता' उन द्वीपसमुद्रों का हे भदन्त | स्वरूप क्या है ? ऐसा यह पांचा प्रश्न उनके स्वरूप विशेष के विषय में है इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभुश्री गौतम से कहते हैं-'गोयमा जंबूद्दीवाइया दीवा लवणाझ्या ममुहा' हे गौतम ! जम्बूद्वीप हैं आदि में जिन्हो के ऐसे तो द्वीप है और लवणसमुद्र हैं आदि में जिन्हों के ऐसे समुद्र है। यहां पर श्रीगौनमस्वामीने प्रभुश्री से सर्वप्रथम द्वीपसमुद्र किस स्थान पर है ? यह प्रश्न किया है। पर प्रभुश्रीने ऐसा उत्तर क्यों दिया कि जम्बूद्वीप आदि द्वीप है । और लवण समुद्र आदि समुद्र हैं। बाततो ठीक है पर इस तरह का जो नहीं मायाम करना सभा ४२ छे. 'कि संठिया णं भते ! दीवसमुद्दा' હે ભગવન્ એ દ્વીપ સમુદ્રોને આકાર કેવો છે ? આ પ્રશ્ન તેના સંસ્થાનના समयमा ४२८ छे. तया 'किमाकारभावपडोयाराणं भंते ! दीवस मुद्दाणं पण्णत्ता' मावन सेवीप समुद्रोनु स्प३५ यु छ ? 2 शतनामा પાંચમે પ્રશ્ન તેના સ્વરૂપ વિશેના સંબંધમાં પૂરેલ છે. આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गीतमस्वामीन में 'गोयमा ! जद्दीवाइया दीवा लवणाइया समुद्दा' गौतम ! पूदी५ मां माता भुस्य छे सेवा भने દ્વીપ છે. લવણ સમદ્ર જેની આદિમાં છે એવા સમુદ્ર છે. અહીયાં શ્રીગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને સૌથી પહેલાં દ્વીપ સમુદ્રો ક્યા રથાન પર આવેલ છે ? એ પ્રમાણેને પ્રશ્ન પૂછેલ છે. પરંતુ પ્રભુશ્રીએ છે. ઉત્તર કેમ આપે કે જંબુદ્વીપ વિગેરે દ્વીપ છે અને લવણ સમુદ્ર વિગેરે સમુદ્રો છે. તમારૂં जी० १००

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