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जीवामिगमसूत्रे
'पढमंमि तिनि उ या सेसाण स उत्तरा नव उ जाव | ओगाहं विक्कम दीवार्ण परिस्यं तच्छं ॥१॥ पदम चक्क परिया वीय चउक्कस्स परिरओ अहियो' सोटेर्हि तिहि उ जोयणसएहिं एवमेव सेवाणं ॥२॥ एगोरूच परिखेवो णत्र चेत्र सयाई अउण पन्नाई । वारस पत्रद्वाई हयगाणं परिवखेवी ||३|| परस एक्कासीया आयंसमुहान परिरयो होइ । अट्ठारस सत्त नउया आसमुहाणं परिवखेत्री ||४ बावीस ते राह परिवखेत्री छोड आसकण्णाणं । पणवीस अउणतीसा उक्कामुह परिरओ होइ ॥ ५ ॥ दो चैत्र सहसा अवसया वंति पणयाला । घदेव दीपा विसेष महिओ परिकखेवी ||६| व्या- 'पढमंग' प्रथमे द्वीपचतुष्के एकोरुकादि के चिन्त्यमाने त्रीणि योजनशतानि अगा-लग समुद्रामा निष्कम् च विष्कम्मग्रहणात् आयामोपि गृद्यते विम्यायामयोस्तुल्यपरिमाणत्वात् तेन विष्कम्समायामं च जानीहीति क्रियाशेषः, 'सेसाणं' इत्यादि, शेषाणां पण्णां द्वीचतुष्काणां वानि इस प्रकार से हैं- 'पढमम्मि तिनि उसपा' इत्यादि गाथाएं छह हैं जो टीका मेंदी हुई है इन गाधाओं की व्याख्या इस प्रकार से है प्रथम द्वीप चतुष्क के - एकोरुक आदि चार द्वीपों के विचार में इन चारों एकोमक आभाषिक वैषाणिक, गंगोलिक द्वीपों की अवगाहना और लम्बाई चौड़ाई तीन सौ योजन की है ऐसा जानना चाहिये इस तरह यह अवगाहना, लम्बाई चौडाई आगे २ के प्रत्येक चतुष्क में एक एक सौ को अधिकता से बढ़नी गई हैं अन्तिम जो घनदन्त आदि चार द्वीप हैं उनमें यह नौ औयोजन तक हो जाती है इस प्रकार दूसरे चतुक के कर्णद्वीर, गजकर्णीप,
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सया' त्याहि छ गाथाओं में संस्कृत टीकामा आपवामा आवे छे. એ ગાથાઓનેા અર્થ આ પ્રમાણે છે પહેલા દ્વીચતુષ્પના એકેક વિગેરે ચાર દ્વીપે.ના વિચારમાં આ ચારે એકરૂક, આભ ષિષ્ઠ, વૈષાણિક, નાંગેાલિક દ્વીપેાની અવગ હૅના અને લબાઈ પડેાળાઇ ત્રસે ચૈાજનની છે. તેમ સમ જવું. આા રીતે આ અવગાહના અને લખાઇ પહેાળાઇ આગળના દરેકચતુષ્ટમાં એકસેસ એકસેાના અધિક પણાથી વધે છે. છેલ્લા જે ધનદન્ત વિગેરે ચાર દ્વીપા છે, તેમાં તે નવસેા ચેાજન સુધી થઇ ળય છે. મા રીતે બીજા ચતુ ના હ્રયકણું દ્વીપ, ગજકર્ણદ્વીપ, ગાકદ્વીપ, શબ્દુલીક દ્વીપમાં અવગાહના
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