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प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.२ ५.३१ अविशुद्ध-विशुद्धलेश्यानगारनि० ४९ ‘णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः अविशुद्धलेश्यतया यथावस्थितबरतु परिच्छे. दस्याशक्यत्वादिति ६। तदेवमविशुद्धलेश्पे ज्ञातरि साधौ षट् सूत्राणि प्रदर्य विशुद्धलेश्ये ज्ञातरि साधौ पट सूत्राणि दर्शयति-'विसुद्धलेस्सेणं' इत्यादि, विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे' विशुद्धलेश्य:-शुक्ललेशायुक्तः अनगार: 'अप्समत्रहरण अप्पाणेणं' असमबहतेन-वेदनादि सप्ठद्घातरहितेन 'अविशुद्धस्सं देवं देवि अणगारं' अविशुद्धलेश्य-कृष्णादिलेश्यायुक्तं देवं देवीमनगारम् 'जाणइ पासइ' जानाति पश्यतिकिमिति प्रश्नः, भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता जाणइ पास' लेश्या वाले देव को देवी को या अनगार को क्या जानता देखता है ? ऐसा यह छठवां प्रश्न है-इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा ! जो इणढे समडे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में उस अनगार का ज्ञान यथार्थ वस्तु प्रदर्शक नहीं होता है। इस प्रकार से अविशुद्ध लेश्या वाले ज्ञाता साधु के सम्बन्ध में छह सूत्रों को दिखाकर अब विशुद्ध लेश्यावाले ज्ञाता साधु के सम्बन्ध में छह सूत्रों को सूत्रकार द्वारा दिखाया जाता है-'विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहएणं अप्पाणेण अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ पासई' इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है कि हे भदन्त ! जो अनगार विशुद्ध लेश्या वाला है-प्रशस्त लेश्या घाला है-और वेदनादि समुद्घात से रहित है-तो क्या वह स्वयं के द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले-कृष्णादि लेश्या वाले देव को देवी को तथा अनगार को क्या હોય, તે શું એવો તે અણગાર સ્વયં વિશુદ્ધ વેશ્યાવાળા દેવને કે દેવીને અથવા અનગારને જાણે છે ? કે દેખે છે ? આ પ્રમાણેને આ છઠ્ઠો પ્રશ્ન पूछे छे. या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामीन ४ छे ४ गोयमा ! णो इणद्वे समझे' गौतम ! । मथ मरा०२ नथी उभ सेवी स्थितिमा તે અનગારનું જ્ઞાન યથાર્થ વસ્તુને જાણવાવાળું હોતું નથી આ રીતે અવિશુદ્ધ લશ્યાને જાણવાવાળા સાધુના સંબંધમાં છ સૂત્રને બતાવીને હવે વિશદ્ધ वेश्यावा ज्ञात साधुना सभा छ सूत्र अपामा भावे छे. 'विसुद्वलेस्सेणं मते ! अणगारे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्स देव देवि अणगार जाणइ पासई' मामा श्रीगीतभस्वामी प्रभुश्रीन सेवा प्रश्न पूछये। छ । सन् જે અણગાર વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા છે, અર્થાત્ પ્રશસ્ત વેશ્યાબળા છે, અને વેદના વિગેરે સમુદ્યાત વિનાના છે, તો શું તે સ્વયં અવિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા કુણાદિ વેશ્યાવાળા દેવને દેવીને તથા અણગારને શું જાણે છે કે દેખે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીને ગૌતમસ્વામીને