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प्रद्योतिका टीका प्र. १ उ. ३ . ३४ एकोरुकद्वीपस्याकारादिनिरूपणम्
वायविधिना उपपेताः - युक्ताः, 'फलेहिं पुण्णा विसंहति३' कुशविकुशविशेषवृक्षपूलाः मूलकन्दादिमन्तो यावद - प्रसादनीया दर्शनीया अभिरूपा प्रतिरूपा स्तिष्ठन्ति वर्त्तन्ते इति ३ ॥
अथ चतुर्थ कल्व वृक्षस्त्ररूपमाह - ' एगोरूय दीवेणं' इत्यादि, 'एगोरुय दीवेण दीवे' एकोरुद्वीपे खलु द्वीपे 'तत्थ ?' तत्र तत्र देशे 'बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो' बहवोऽनेके द्वीपशिखा नाम दीपशिखा इव दीपशिखाः दीपवत् प्रकाशकत्वात् अन्यथा - तत्राग्नेरभावात् दीपशिखानामपि तत्रासंभवात्, तादृशा द्रुमगणाः कलरवृक्षाः प्रज्ञप्ताः - कविता', हे श्रमण आयुष्मन् ! 'जहा से संझादिरागसमए नवणिहिपक्षिणो दीन्रियाचक्क बालविदे' यथा ते सन्ध्यातथा 'फलेहि पुण्णा०' फलों से भी परिपूर्ण होते हैं इनके नीचे की जमीन भी 'कुलत्रिकुविद्धरुक्खमूला जाव चिह्नंति' कुश एवं विकुश से विहीन रहती है तथा ये भी प्रशस्त मूल स्कंध आदि वाले होते हैं । तात्पर्य यही है कि जिस प्रकार यहां पर वादित्र अनेक प्रकार के होते हैं वैसे ही वहां के ये कल्पवृक्ष भी अनेक प्रकार के होते हैं | ३ | चतुर्थ कल्पवृक्ष का स्वरूप कथन
'एगोरुप दीवे' एकोरुरु द्वीप में 'तत्थ तथ' जगह २, 'बहवे दीन सिहा णाम दुमगणा पण्णत्ता समाउलो !' हे श्रमण आयुष्मन् ! अनेक दीप शिखा नाम के कल्पवृक्ष कहे गये हैं । दीप में से जैसा प्रकाश निकलता है वैसा ही प्रकाश इनमें से निकलता है इसी कारण इनका नाम दीप शिखा कहा गया है यहां अग्नि नहीं होती है अतः यहां दीपों की शिखा का भी अभाव है पर यहां जो प्रकाश होता है तेमनी नीथेनी नमीन पशु 'कुस विकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति' भुश अने વિકુશ વિનાનીજ હાય છે. તથા તે પણ પ્રશસ્ત મૂળ સ્કંધ વિગેરે વાળા હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે જેમ અહિયાં અનેક પ્રકારના વાછા હેાવાનું કહેલ છે. એજ પ્રમાણે ત્યાંના આ કલ્પવૃક્ષે પણ અનેક પ્રકારના હાય છે. ૩
हवे थोथा उपवृक्षना स्वयतुं थनवासी गावे . ' एगोमयदीवे' शे४।३४ द्वीपसां 'तत्थ तत्थ स्थणे स्थणे. 'बह वे दीवसीहाणाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउलो' डे श्रमण आयुष्मन् द्वीयशिया नामना मने मध्यवृक्षो પ્રકાશ આમાંથી કહ્યા છે. દીવામાંવી જેવા પ્રકાશ નીકળે છે, એવાજ પશુ નીકળે છે, તેથીજ તેનુ' નામ દીપશિખા એ પ્રમાણે કહેલ છે. અહિયાં અગ્નિ હૈાતી નથી, તેથી અહ્રિયાં દીવાની શિખાને પણ અભાવ છે. પરંતુ मडियां ? अाश होय छे, ते से उत्पवृक्षोभ थी आवेसो होय छे, 'जहासे