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___जीवामिगमस्ने स्वेदः 'पसीना' इति प्रसिद्धः, रजा-उड्डीयसकग्नो रजः कणः, इत्यादि दोपवर्जितं शरीरं येषां ते तथा, 'निरुवलेवा' निरुपलेपा:-मलमूत्रादिलेपरहिताः 'अणुलोमवाउवेगा' अनुलोमवायुवेगाः अनुलोमः-अनुकूलः वायुवेगः-शरीरान्ततिवायुसंचारो येषां ते तथा वायुगुल्मरहितोदरमध्यपदेशा इत्यर्थः, उदरमध्यप्रदेशगतवायुगुल्मवतामनुकूलवायुवेगस्यासंभवात् । 'कंकरगहणी' कङ्कग्रहणया, कङ्कस्य तन्नामख्यातपक्षिविशेषस्य ग्रहणिः गुदाशयो येषां ते तथा नीरोगवर्चस्क
तया निलेप गुदाशया इत्यर्थः, 'कवोयपरिणामा' कपोतपरिणामाः, कपोतस्येव __ परिणाम आहारपाको येषां ते तथा, कपोतस्य जठराग्निः पाषाणकणानपि जरयतीति प्रसिद्धिः तद्वत्तेषामाहारपाको भवति न जातु चित्तेषामनर्गलाहारग्रहणेऽपि अजीर्णदोषाः संभवन्तीत्यत उक्तं कपोतपरिणामा इति । 'सउणिवपोसपिढे तरोपरिणया' शकुनेरिव पोसपृष्टान्तरोपरिणताः, अत्र निष्ठान्तस्य परनिपाता, अनिष्ट सूचक चिह्न पसीने और घूलि से विहीन होते हैं । 'निरूबलेवा अणुलोमवावेगा कंक महणी कवीयपरिणामा' किसी भी प्रकार का उपलेप इनके शरीर पर नहीं होता है 'अणुलोमवाउवेगा' वातल्म-वात गोला से रहित उदर भाग वाले होने से अनुकूल वायु वेग वाले होते हैं क्योंकि उदर स्थित वात गोले वाले का वायु वेग अनुकूल नहीं हो सकता है 'कंकरगहणी' जैसे कंक नाम के पक्षी का गुदा भाग निर्लेपहोता है उसी प्रकार इनका गुदा भाग नीरोग मल वाले होने से निर्लेप गुदाशयवाले होते हैं। 'कवोयपरिणामा' जिस प्रकार कबूतर की जठराग्नि कंकर को भी पचा सकती है इसी प्रकार की इनकी जठराग्नि होने से ये कपोत परिणाम वाले कहे जाते है। अर्थात् ये कपोत के जैसी पाचन क्रिया वाले होते है। 'सउणिव्व पोस पिटुंतरोपरिणयो' छ. णिरुवलेवा अणुलोमवाउवेगा, फकग्गहणी कवोयपरिणामा' म ५ प्रारना ७५५ उता नथी. 'अणुलोमवाउ वेगा' पातम-वायुना गाथा २हित २ ભાગ વાળા હોવાથી અનુકૂળ વાયુ વેગવાળા હોય છે. કેમકે પેટમાં રહેલ पायुना जावाजानी वायुवेग अनु० जात नथा 'ककगहणी' २४ નામના પક્ષને ગુદાને ભાગ નિર્લેપ મલરહિત હોય છે. એ જ પ્રમાણે તેમનો जहाना मा भत ना हाथी नि ५ गुशियाणा हाय छे. 'कवोय परिणामा' २ मृतरनी ०४४२fAxiराने ५५ पयावी श? छे. मे प्रभार એમની જઠરાગ્નિ હોવાથી કપોત પરિણામવાળા કહેવાય છે. અર્થાત્ તેઓ B२ना २वी पायन यावाणा डाय छे. 'सउणिव्व पोसपिटुतरोरूपरिणया'