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द्योतका टीका प्र०३ उ. ३ सु. २६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम्
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चतुष्पद स्थलचरजीवानां कृष्णनीकादिकाः षडपि लेश्या भवन्ति दृष्ट्यादि द्वाराणि पक्षिवदेव चतुष्पदस्थलचरजीवानामपि ज्ञातव्यानीति । खेचरापेक्षया चतुष्पदस्थलचराणां यद्वैलक्षण्यं तत् स्वयमेव दर्शयति- 'णाण तं' इत्यादि, 'णाणत्तं' नाना भेदः, इयम् - 'ठिई जहन्नेर्ण अंतोसुहुत्तं उक्कोसेणं तिचि पलिओ माई ' चतुष्पदस्थलचरपञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां स्थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्त्त उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि । ' उन्बट्टित्ता चउत्थि पुढर्वि गच्छति' इमे चतुष्पदस्थळ चरजीवाः उदवृस्य चतुर्थी पङ्कमभापृथिवी पर्यन्तं गच्छन्तीति ततः परतरपृथिव्यां तेषां गमनाभावादिति ॥ ' दसजाइकुलकोडी' दसजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशत सह
of' हे गौतम ! चतुष्पदस्थलचर जीवों के कृष्ण बेवाएं होती हैं । दृष्टि आदि द्वारों सम्बन्धी कथन यहां पक्षि प्रकरण के जैसे ही समझना चाहिये पर खेचरों की अपेक्षा जो चतुष्पदस्थलचर के स्थिति उतना और योनिसंग्रह इन द्वारों में भिन्नता है वह इस प्रकार से है-'णाण प्तं' इस सूत्र द्वारा यही बात समझाई जा रही है - 'ठिई जहन्ने णं अतोसुद्धत्तं उकोसेणं तिनि पलिओ माई' यहां स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट से तीन पल्योषम की है ये 'उव्वट्टित्ता चउत्थी पुढव गच्छति' मरकर नीचे को सीधे चतुर्थ धूमप्रभा पृथिवी तक जाते हैं आगे पृथिवियों में नहीं जाते हैं। क्योंकि वहाँ तक जाने के लिये इनमें गमन शक्ति का अभाव है । 'दसजाती कुल कोडी' इनके कुल फोडी
ગૌતમ ! ચતુષ્પદ સ્થલચર જીવાને કુણુલેશ્યા હાય છે અહિયાં દૃષ્ટિદ્વાર વિગેરે દ્વારાનુ કથન પશ્ચિમેના પ્રકરણના કથન પ્રમાણે જ સમજી લેવું પર'તુ ખેચરાની અપેક્ષાએ ચતુષ્પદ સ્થલચરાનુ' સ્થિતિદ્વાર અને ઉદ્દતના દ્વારના अथनभां भूहायागु बेस छे. ते लढाया या प्रभाषे समन्वु' 'जाणते' सूत्र द्वारा से वातनु' प्रथन उरे छे. 'ठिई जहणेण' अतोमुहुत्तं उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाइ” भ्मद्धियां तेखानी स्थिति ४धन्यथी ! तमुहूर्त'ना उसी छे भने उत्सृष्टथी श्रायु यहयोयमनी छे. तेथे 'उन्वट्टित्त चउत्थि पुढवीं गच्छति' भरीने सीधा नाथे थोथी धूभप्रभा पृथ्वी सुधी लयं है. તેનાથી માગળની પૃથ્વીયેામાં જઈ શકતા નથી. કેમકે ત્યાંથી આગળ જવા માટે तेश्रोभां गभनशक्तिनो अभाव छे. 'दख जाती कुलकोबी' तेथोनी समेटी
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