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जीवामिगमसूत्रे कमलानि उपलक्षण त्वात्कुमुदादीनि यस्यां पुष्करिण्यां वापिका सा पपदपरिभुज्यमानकमला ताम्, वया- 'परिहत्य मर्मतसच्छकच्छ' परिहत्थ भ्रमन्मत्स्यकच्छपाम् परिहत्थोऽतिरेकताः - अतिपभूताः भ्रनन्तो मत्स्यकच्छपा यस्यां सा तथा ताम्, 'अच्छविमलसलिलण ' अच्छविमलसलिल पूर्णम् अच्छे स्वतः स्फटिकवत् शुद्धेन विमलेन आगन्तुकमलरहितेन सबिलेन जलेन पूर्णा इति अच्छविमलसलिलपूर्णा ताम् तथा-'अणेग सउणिगणमिण य विरइय सदुन्नइय महुरसरनाइयें' अनेकशकुनिगणमिथुनक विरचित शोन्नतिक 'मधुरस्वरनादिवाम् अनेकैः शकुनिगण मिथुन कैर्विरचिते rिataa: स्वेच्छया प्रवृत्तेः शब्दोन्नतिकम् उन्नतशब्दं मधुरस्वरं नादितं यस्यां सा तथा ताम, 'तं' ताम् - एतादृशविशेषणयुक्ताम् पुष्करिणीम् 'पास' पश्यति 'तं पासिता तंगा' ai पुष्करिणीं दृष्ट्ातामवगाहते 'ओगाहिता' अगाद्य तां पुष्करिणीम् 'से णं तत्थ उपि पविणेज्जा' स खलु मत्तमातङ्गः तत्र पुष्करिण्या मवगाहनेन शरीरस्य उष्णं परिदाहमपि मविनयेत् प्रकर्षेण सर्वात्मना अपनयेत् तथा'तिपि पविणेज्जा' तृपामपि प्रविनयेत् जलपानेन, तथा - 'खुईषि परिणेज्जा' रही है तथा 'छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं' जिस पुष्करिणी-वाव. डीके कमलों के ऊपर भ्रमर गुञ्जार कर रहे हैं 'परिभमंतमच्छकच्छ में' जिसमें अधिक रूप से मत्स्य और कच्छा इधर ले उधर घूम रहे हैं ' अच्छविमलसलिलवणं' | स्वच्छ और निर्मल पानी जिसमें भरा हुआ है 'अगसउणिगण मिट्टगपचिरइय, सदुना यमहरसरनाइयं' जो अनेक जोडा युक्त पक्षियों के समूह के मधुर स्थर चह चहाने से किये गये जोर २, के शब्दों से शब्दायमान हो रही है उसको 'पासई' देखता है 'पासित्ता' ऐसे विशेषणों वाली उस पुष्करिणी को देखकर वह मत्त हाथी 'तं ओगाहई' उसमें प्रवेश करता है 'ओगाहिता' और प्रवेश करके 'से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्ज' उससे
युक्त मनेस होय, तथा 'छप्पयपरिभुज्जमाणकमल' ने पुष्करिणी - वावडीना रभक्षीय म्भणोनी उपर अमराओ गुरव ४री रह्या होय, 'परिहत्थमभं तमच्छकच्छ ' જેમાં વધારે પ્રમાણમાં માંછલાએ અને કાચબાએ! આમ તેમ ફરતા હાય, "अच्छ विमलसलिलपुरणं' २१२४ याने निर्भयाली मां लदे छे, 'अणेग सरणिगणमिहुणपविरइय दुन्नइयमहुरसरनाइयं' मां पक्षियाना ने लेडाએના સમૂહ હાય અને તેઓના મધુર સ્વરોના ધ્વનિથી શબ્દાયમાન બનેલ हाय वा सरोवरने 'पासई' लुवे अने ते 'पासित्ता' भाषा विशेषज्ञोवाणा ते ! 'सुपरने लेने से भत्त' सेवा हाथी 'तं श्रोताहइ' तेमां प्रवेश रे .