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योतिका टीका प्र.३ उ.३ रु.२४ नैरयिकाणां पुद्गलपरिमाणादिकम् ३७३ नसामाः समुत्पद्यन्ते इत्यापिका । 'भिन्न हुत्ते' अनेन :पदेन द्वितीयगाथा गुमते भिन्नमुहूर्तमन्तर्मुहूर्तादिकालं नरकादिपूत्कृष्टा विकुणा भवतीति 'पोगमाय' इत्यनेन अनिष्टादिपुगका स्तेषामाहाराय भवतीति । 'असुभा' इति पदेन नैरयिकाणा मशुमा विकुर्वगा भवतीति चतुर्थगाथोक्तोऽर्थो निरूपितः । 'अस्साओ, भनेन सर्वपृथिवीषु असात एव भवतीति पञ्चमीगाथा कयिता 'उववाओ' अमेन देवादिकमणोपपतिकाले सातं भवतीति षष्ठी गाथया कथितम् । 'उप्पाओ' भनेन दुखाभिद्रतानां नारकाणाम् उत्कर्षण पश्चयोजनशतानि उत्पांतो भवतीति सप्तमगायया प्रदर्शितम् 'अच्छि' इत्यनेन अक्षिनिमीलमात्रमपि मुखं न भवति गया है कि नरकों में उत्तर विकर्षणा की स्थिति उत्कृष्ट से एक अन्त मुहर्त की होती है 'पोग्गलाय' आदि तृतीय गाथा द्वारा यह समझायों गया है कि नारकों का आहार अनिष्टादि विशेषणों वाले पुद्गलों का होता है ॥ 'असुभा' आदि चतुर्थ गाथा से यह समझाया गया है कि नेरर्थिक जीवों की विकुर्वणा अशुभही है ४॥ 'अस्लाओ' यह पांचवी गोथा यह समझाती है कि नारक जीवों को समस्त पृथिवियों में असा. तो का ही उद्य रहता है ५॥ 'उवाओ' छठी गाथा द्वारा यह कहा गया है कि नारक जीवों को पूर्व संगतिक देव की सहायता आदि का. रणों से सातो का भी उद्घ हो जाता है ६॥ 'उप्पाओ' इस सातवीं गाथा द्वारा यह प्रकट किया गया है कि नारक जीवों का नरकावास की कुंभी पाक आदि से इतनी वेदना होती है कि वे कम से कम एक कोश तक और अधिक से अधिक पांच लो योजन तक उछल पड़ते हैं। 'अच्छि' इस आठवीं माथा द्वारा यह समझाया गया है कि नारकजीवों 'पोगलाय' विगैरे त्रील गाथा द्वारा २ सभामा मा०युछे नाना भासा मनिष्ट विगैरे विशेषवाणा पुदवान डाय छे. ॥ 3 ॥ 'असभा' વિગેરે ચોથી ગાથાથી એ સમજાવ્યું છે કે નૈરવિક જીની વિમુર્વણ અશુભ हाय ॥ ४ ॥ अस्साओ' या पांयमी गाथा मे मताव छ । ना२४ वान सधजीवीयामा सशतान य २ छ. ॥ ५ ॥ 'उववाओ' मा छ81 ગાથા દ્વારા એ કહેવામાં આવ્યું છે કે નારક જીને પૂર્વ સંગતવાળા દેવની सहाय विगैरे ॥२॥थी शान मय ५ तय छे. ॥६॥ 'उप्पामो આ સાતમી ગાથા દ્વારા એ વાત પ્રગટ કરવામાં આવી છે કે નારક અને નરકાવાસની કુંભીપાક વિગેરેથી એટલી બધી વેદના થાય છે કે તે ઓછામાં ઓછા એક ગાઉ સુધી અને વધારેમાં વધારે પાંચસે જન સુધી ઉછળે છે. ॥ ७ ॥ 'अच्छि' मा मामी या द्वारा में समायुछे नावाने