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जीवामिगमसूत्रे
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अस्यैवास्य स्पष्टतरभावनार्थ दृष्टान्तान्तरमाए - ' से जहावा' इत्यादि 'से हावा मतमातंगे' स यथा वा मदमातृतः, अब 'से' शब्द : सफलजनमसिद्धः यथेखिष्टान्तत्वोपदर्शने, वा शब्दो विकल्पते अयं वा दृष्टान्तो विवक्षितार्थप्रति पराये ज्ञातव्य इति विषल्पभावना मत्तमातङ्ग इत्यत्र मत्तति मदवित इत्यर्थः मस्ती | अत्र पाठोऽस्यजोऽपि संभवति ततस्तदा शंकान्युदासार्थे नाना' देशजवियजनानुग्रहाय वाss- 'दिए' द्विषय:- द्वाभ्यां मुखेन करेण च वि afa face: 'मूलविभुजादयः' इतिफ प्रत्ययः । एतादृशः 'कुंजरे' कुञ्जरः बौ पृथिव्यां जीर्यतीति कुञ्जरः- अथवा कुखे वने रमते इति कुवरः 'सहिहायणे' षष्टिहायनः पष्टि:- पष्टिसंख्यका हायना वर्षाणि विद्यन्ते यस्य स पष्टिहायनः षष्टि वर्षायुकः 'पढससरयकालसमयसि वा' प्रथमशरत्कालस्मये वा शरत्काळरय
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मात्र बाल तक के लिये भी रख देता है और यह उस काल के निर्गत हो जाने पर जब उसे उसी रूप में पुनः निकालने को तैयार होता है तो वह उस गोठे को उसी रूप में वरां से नहीं निकाल सकता है क्यों कि वह वहां रखते ही मक्खन के जैसा गल जाता है और पिघल जाता है इतनी अधिक उष्णता उन उष्ण वेदना वाले नरकों में हैं इसी दृष्टान्त को समर्थ करने के लिये यह दूसरा दृष्टान्त - ऐसा है-' से जहा पाए वा मत्तमातंगे' जैसे कोई मदोन्मत्त हस्ती होमाग से यहाँ चाण्डाल नहीं लेना चाहिये किन्तु - 'कुंजरे' कुंजर - गजहाथी ही लेना चाहिये इसी बात को मरुद करने के लिये 'कुंजर' शब्द का प्रयोग किया गया है- क्योंकि मातंग नाम चाण्डाल का भी है और वह मत्तमातङ्ग 'सहाणे' २० साठ वर्ष का हो और जब वह 'पढमसरयकाल समयंसिया' प्रथम शरत्काल के समय में अर्थात् પૂરા થતાં યારે તે તેને એ રૂપે જ બહાર કહાડવા તૈયાર થાય છે, તે તે એ ગાળાને એ રૂપે ત્યાંથી કહાડી શકતે! નથી. કેમકે તે ત્યાં મૂકતાંજ માખણની જેમ ગળી જાય છે, અને પીગળી જાય છે. એવી અધિક ઉષ્ણતા તે ઉજ્જુવેદનાવાળા નારકામાં છે. આ દૃષ્ટાંતને પુષ્ટ કરવા માટે બીજું દૃષ્ટાન્ત आयतां सूत्रभर हे छे ट्ठे 'से जहा नामए वा मत्तमात गे' भी મદોન્મત્ત હાથી હાય, માત’ગ શબ્દથી અહિંયા ચડાલ ગ્રહણ કરવાનેા નથી. परंतु 'कुंजरे' ०४२ त हाथी ग्रह उराय छे से वात ताववा માટે જ કુંજર શબ્દને પ્રયાગ કરવામાં આવેલ છે. કેમકે માતંગ ચાંડાળને वामां आवे छे भने ते भक्त भातंग 'संविहायणे' ६० सात वर्ष हमने न्यारे ते 'पढम सरय कालसमय सि वा' चहेता शरहू आज सभयभी