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प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२ २.१८ नारकजीवानां संहनननिरूपणम् २५५
'इमीसे गंमते ! रयणप्पसाए पुढबीए' एतस्यां खल्ल भदन्त । रत्नप्रभा पृथिव्याम् 'नेरइयाण सरीरया' नेरयिकाणां शरीराणि 'केरिसया फासेणं पन्नत्ता' कीदृशानि स्पर्शेन प्रज्ञप्तानि भगबानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'फुडियच्छविविच्छवया' स्फुटितच्छवि विच्छ वयः' प्रथमच्छवि शब्दस्त्वग्रवाची द्वितीयश्च्छायााची, तथा च स्फुटितया राजिशतसंकुलया त्वचा विच्छषयो विगतच्छाया इति स्फुटितच्छविविच्छचयः । 'खरफरुसझामझुसिरा' खरपरुषमाम शुषिराणि खराणि अतएव अतिशयेन परुषाणि ध्मामानि दग्धच्छायानि शुषिराणि-शुपिरशत कलितानि ततः पदद्वयस्य पदद्वयेन विशेषणसमासः सुपक्वे___ तथा इली प्रकार की अनिष्टलर आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाली दुर्गन्ध द्वितीय पृथिवी के नैरपिकों से लेकर अधःसप्तमी पृथिवी के नारकों के शरीर से आती है ऐसा जानना चाहिये. ___ 'इमोसे न भंते स्थणप्पभाए पुढचीए नेरयाणं सरीरया केरिलया फालेणं पण्णसा' हे बदन्त ! इस इलमा पृथिवी के नैरमिकों के शरीर स्पर्श से कैसे होते है ? अर्थात् प्रथम पृथिवी नैरयिकों के शरीर का स्पर्श केला होता है ! उत्सर में प्रभु कहते हैं-'गोथमा ! कुठिच्छवि विच्छषया' हे गौतम ! प्रथम पृथिवी के नैरपिकों के शरीर जितकी स्वचा के ऊपर सैकडो झुरियां पड रही है और इसी से जो छायाकान्ति से रहित हो रहा है. लथा-'खरफरूम०' जिसका स्पर्श एसष कठोर है सैड़ों जिससे छेद हो रहे हैं और जिलकी छाया-कान्ति जली हुई वस्तु की जैली है-इस प्रकार के स्पर्श-ठोर सर्श वाले होते हैं।
તથા આવા પ્રકારની અનિષ્ટતર વિગેરે પૂર્વોક્ત વિશેષ વાળી ગધ બીજી પૃથ્વીના નૈરયિકથી લઈને અધઃસપ્તમી પૃથ્વીના નાકજીના શરીરેभाधा मावे . तेभ समय,
'इमीसे ण भंते ! स्यशप्पभाए पुढत्रीए नेरइयाण' सरीरया फेरिस्था फासेण पण्णत्ता' है लगन् । २त्ना चीन नैयिाना शरी। २५शथा કેવા હોય છે? અર્થાત્ પડેલી પૃથ્વીના નિરયિાના શરીરનો સ્પર્શ કેવો હોય છે? ___ प्रशन उत्तरमा प्रमुभीतमाभीने ४९ छ है 'गोयमा ! फुडिय च्छविविच्छविया' के गौतम । पहेली पृथ्वीना नैयिनशरी। यानी ચામડી ઉપર સેંકડે ઝુરિયા-ઉઝરડાં કરચલી પડેલી હોય અને તેથી જ જેઓ કાંતિવિનાના હે ય છે તથા ૩ REG. જેનો સ્પર્શ પરૂષ કઠેર છે. અને જેમાં સેંકડે છેદ થઈ રહ્યા હોય છે, અને જેની છાયા-કાંતિ બળેલી વસ્તુના જેવી હોય