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जीवामिगमको निरयेषु 'नेरइया केरिसयं उसिणवेयण' नैरविकाः कीदृशीगणवेदनाम् 'पदणु. ज्मवमाणा विहरंति' प्रत्यनुभवन्तः प्रत्येक वेद पगानाः विहरन्ति-तिष्ठन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतन ! 'से नहा नामए' स यथानामक--अनिर्दिएनामकः कश्चित् 'यम्मारदारए मिया' कर्मारदारकोलोहकारदारकः-लोहयापुर: स्यात् कीदृशः मः ? उनि दार सम्य विशेषणान्या. 'वरुणे' तरुणः - मजल मानवयाः । 'बल' बाल पान बलं शारीरिक मामयं तदम्या. स्तीति पकवान शारीरिक बलविशिष्ट इस्यथः 'जुमवं' युगवान युगं नृपमदापमादिकालः स स्वेन रूपेण विद्यते यम्य न दोपदुष्टः स युगवान् अयं भावः-कालो. पद्रवोऽपि सामर्थ विघ्नहेतुर्भवति स चास्य नास्तीति महिपत्त्यर्थ युगवानिति विशेषणम् 'अप्पायंके' अल्पाततः अपातको वा अल्पमोऽत्रागाववाचकः तव. ण भंते ! णेरइएसु' हे भदन्न ! जिन नरकों से उम्ण वेदना का अनुम वन होता है उन नरकों में 'नेरक्ष्या के ग्लियं उणिवेषणं पच्चणुमय माणा विहरंति' नरथिक जीव की उनवेदनाफा अनुभवन करते हैं? इसके उत्तर में प्रलु कहते हैं-'गोषमा! से जहाणामए फम्मारदारए सिया' हे गौतम ! जैहो योई लहार का पुत्र हो और वह 'तरणे' जवान हो 'पलव' शारीरिक सामर्थ से शुकहो 'जुगवं' स्तुपमाघम वादि काल में उत्पन्न हुआ हो 'युगवान् ऐसा कहने का तात्पर्य यह फि इसकाल में कोई उपद्रव नहीं होता है अतः उपद्रयाभाव से शारीरिक सामर्थ्य का विकास ही होता है सोपद्रवकाल में शारीरिक सामर्थ्य हा विकास नहीं होता प्रत्युन वह सामर्थ्य के विकात विन्न का हेतु ही होता हैं। 'अप्पायके' अल्प आतङ्क चालाको-अर्थात् ज्वरादि रोग से मधा णेरइएसु' मपन् रे न२ मा पहनाना अनुभव घाय छ त नरीमा 'नेरइया केरिसय' उसणवेयण पच्चगुभवमाणा विहरंति, नरथिः । ४ी ઉણ વેદનાને અનુર્ભાવ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને
छ, 'गोयमा । से जहा नामए कम्मारदारए सिया' से जीतम ! २ ४ सपारने पुत्र डाय भने त 'तरूणे' युपान खाय 'बलवं' शारीरि सामथ्य यी युत डाय, 'जुगव', सुषम सुपम विगेरे म पनि ये डाय, 'युगवान्' એમ કહેવાનું કારણ એ છે કે તે કાળમાં કોઈ પણ ઉપદ્રવ થતો નથી. તેથી ઉપદ્રવના અભાવમાં શારીરિક સામર્થ્યને વિકાસ થાય છે. ઉપદ્રવ વાળા સમયમાં શારીરિક સામનો વિકાસ થતો નથી. પરંતુ તે સમર્થ્યના વિકાસમાં Gिarl ३२९ ३५ सय छ 'अपाय के ४६५ भात पाणा 31य अर्थात तार