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प्रमेय धोतिका टीका प्र.३ उ.२९.१५ नरकावासानां वर्णादिनिरूपणम् १९१ गौतम ! 'से जहा नामए' स यथानामकः 'अहिमडेइवा' अमृत इति वा अहिमृतः मृतसर्पशरीर इत्यर्थः मृतात् सर्पशरीरात् याशो गन्धः पादुर्भवति तादृशो गन्धो नरकाणामिति, एवं सर्वत्रापि योजनीयम् । 'गोमडे का' गोस्त इति वा, 'सुगगमडे वा' शुनकमृत इति था, 'मज्जारमडेइ वा' मानारमृत इति वा 'मणुस्स मडेइया' मनुष्यमृत इति वा 'महिसमडेगा महिषमृत इति वा 'मृसगमडेइ वा मूषकमृतइति वा 'आसमडेइ का' अश्वमृत इति का 'हथिमडेइ वा हस्ति मृत इति वा, सीहमडे वा' सिंह मृत इखि वा, 'दग्यमडेवा' ध्याघ्रमृत इति वा, 'विगमडे वा' वृस्मृत इति का, 'दीविय मडेइ बा' द्वीपस्मृत इति वा, द्वीपकश्चित्रका सर्वत्र अहिश्चासौ मृतश्चेत्यहि इति रूपेण विशेषण समासः । इह सधोमृतं शरीरन दुर्गन्धि भवति तमाह-'मय कुहिचिरविण कहते हैं-'गोयमा! से जहानामए अहिडेह व्या गोमडेह वा सुणामडेह धा' हे गौतम ! जैसा सर्प का मृतकलेवर होता है, सास का कृतकलेचर होता है, कुत्ते का मन कलेवर होता है, 'मज्जारपडेइ वा बिल्ली का मृतकलेवर होता है, 'मणुसपमडेइ वा मनुष्य का मृतकलेवर होता है, 'महिलमडे वा' असे का मृमकलेवर होता है, 'मुलगमडे घा' मूषक का मृतकलेवर होता है । 'आलमडेह वा' घोडे का मृतकलेवर होता है। हथिमडेह वा हाथी का मृतकलेवर होता है, 'सीहपडे इशा सिंह का मृतकलेवर होता है, 'वग्यमडे या' व्याघ्र का स्मृतकलेवर होता है, 'विगमडेइ वा' वृक का मृतकलेवर होता है। 'दीषियमडे वा' चित्ता का मृतकलेव होना है और ये सब मृतकलेवर 'भयकुहिध चिक्षिण?गौतम स्वामी ने छ, 'गोयमा ! से जहानामए अहिसडेइ वा गोमडेइ वा सुणगमडेइवा' 3 गीतम! भरेता साप २ प्रमाणे ४१२ शरी२ हाय छ, મરેલી ગાયનું જેનું કલેવર શરીર હોય છે, મરેલા કૂતરાનું શરીર જેવું હોય છે, 'मज्जारमडेइवा' भरेती मीनु रे प्रमायेनु शरी२ छ।य 'मणुम्स मडेइवा' भरेता मनुष्यनु २ प्रभानु शरी२ सय छ, 'महिसमडेइवा' भरेकी सनु रेवु शरीर खाय छ 'मुसगमडेइ वा' भरेखा नु शरी२ २ इय छे. 'आसमडेइ वा' भरेखा पातु शरी२ हाय छ, 'हत्थिमडेइ वा' भरे। हाथीनु' - शरीर हाय छ, 'सीह मडेइव।' भरेता सिंह ने शरीर छोय छे. 'वघडेइवा' भ२॥ पाचनु २ शरीर छ।य छ, “विगमडेइवा' १४ मा १३नु नवु शश२ हाय छ, 'दीवियमडेइवा' भरेता दीपानुरे शरीर