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या। वसुदेव की रोहिणी नाम की रानी से नौंवे बलदेव बलभद्र जी हुए। और दूसरी देवकी रानी से नौवे वासुदेव श्रीकृष्ण महाराज हुए। दूसरे सुवीर के पुत्र का नाम भोज विष्णु था। उसके उग्रसेन और देवक दो पुत्र थे। उग्रसेन के एक पुत्र कंस, और दूसरी पुत्री राजुलमति नाम की हुई। उधर देवक के देवकी नाम की पुत्री हुई। इसी देवकी का विवाह वसुदेव जी से हुआ था । कृष्ण ने कंस को मार मथुरा पर अधिकार जमाया ही था कि जरासिंध के भय से, समुद्र विजय आदि सब दौड़-भाग कर समुद्र के किनारे आये । वहा द्वारिका नगरी बसाई । दशो दशारों में बड़े भाई समुद्र विजय थे। कृष्ण महाराज के ताया और यही राजा थे । समुद्र विजय की शिवादेवी रानी से बाइ.
सवे तीर्थकर श्री अरिष्टनेमि जी जन्मे । अरिष्टनेमि भगवान् के ___ पास कृष्ण महाराज के छोटे भाई गजसुकुमाल ने दीक्षा ली और जल्दी ही कर्म काट के मोक्ष मे पधार गये ।
जरासिध प्रतिवासुदेव से कृष्ण महाराज का युद्ध हुआ। जरासिंध को मार कर कृष्ण वासुदेव तीन खंड के राजा बने।
अरिष्टनेमि के मोक्ष में पधारने के कुछ समय ही पीछे ब्रह्म नामक राजा चुलनी रानी माता के ब्रह्मदत्त का जन्म हुआ। समय पाकर ब्रह्मदत्त बारहवे चक्रवर्ती हुवे । और भोगो मे आसक्त बन कर अन्त मृत्यु पाकर सातमी नर्क मे गये। जहां उत्कृष्टी तेतीस सागर की उम्र है।