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शम
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करना विनिपात को न्यौता देना होगा । जब आत्मा अलिप्त बन जाती है, तब हर बात संभव और सुगम होती है । इस तरह संसर्ग के टूट जाने से और उपशमपोषक ग्रंथों के निरन्तर पठन-पाठन से उपशमरस की बाढ़ आते देर नहीं लगेगी और जीवात्मा उसमें गोते लगायेगी । तत्पश्चात् आवश्यकतानुसार जो विषय-संपर्क रखेंगे, उसमें राग-द्वेष का कुछ नहीं चलेगा, बल्कि उत्तरोत्तर उसका क्षय होता जाएगा ।
राग के खेल में भी समता का आभास मिलता है, लेकिन देखना कि उसके जाल में कहीं फँस न जाओ! क्योंकि वह समता नहीं है, बल्कि सिर्फ समताभास है । आमतौर पर बाह्य पदार्थों की अनुकुलता में मानव शान्ति और समता समझ लेने की गंभीर भूल कर बैठता है । जबकि वह समता कृत्रिम होती है, उसे भंग होते देर नहीं लगती ।
गर्जज्ञानगजोत्तुंगरंगद्धयानतुरंगमाः ।
जयन्ति मुनिराजस्य, शमसाम्राज्यसंपदः ॥८॥४८।। अर्थ : जहाँ गर्जन करते ज्ञान रूपी गजराज और इठलाते इतराते ध्यान
रूपी अश्वों की भरमार है, ऐसे मुनिरूप नरेश के शमरुप साम्राज्य में सदा-सर्वदा सुख-शान्ति और संपदा की जयपताका निरन्तर फहराती
रहती है। विवेचन : 'मुनिराजा' ! कैसा सुन्दर नाम है ! कर्णप्रिय और परम मनोहर । उनके विशाल साम्राज्य का कभी अवलोकन/दर्शन किया है ? अरे, शम....उपशम....समता ही तो उनका नयनरम्य, परम मनोहर विशाल साम्राज्य है ! वे बड़ी सावधानी से उसका संचालन और संरक्षण करते हैं । उसकी सीमा पर ऐसी तो कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था है कि राग-द्वेष जैसे महाविकराल शत्रु लाख प्रयत्नों के बावजूद भी उसे भंग नहीं कर सकते । ऐसी इनकी जबरदस्त घाक और बड़ा दबदबा है ।
जैसा उनके नाम का प्रभाव है वैसा उनका शस्त्रभंडार और सेनायें भी जबरदस्त अतुल बलशाली हैं। उनके पास दो प्रकार की सेनायें हैं : हयदल और अश्वदल । इन पर वे पूर्ण रूप से आश्रित हैं और मुस्ताक भी । ज्ञान उनका हयदल है और ध्यान उनका अश्वदल । ज्ञान रुपी हयदल की दिगंत-व्यापी गर्जना और ध्यान रुपी अश्वदल की हिनहिनाहट के बल पर उनके संपूर्ण साम्राज्य में परम शान्ति, सुख
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