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अनुभव
४०५ ही उन्हें 'शास्त्र-दृष्टि' प्राप्त हुई कि घ्यान में परिवर्तन आया ! शत्रु को मारने हेतु मुकुट लेने मस्तक की ओर दोनों हाथ गये और अपने मुंडित मस्तक का आभास होते ही, अविलम्ब दृष्टि-परिवर्तन हुआ । शास्त्ररष्टि ने उन्हें अधोगति के नरक-कंड में गिरते हुए थाम लिया....। यकायक पूरे वेग से....और क्षणार्ध में ही उन्हें 'केवल ज्ञान' की रमणीय भूमि पर ला रखा ! वे केवलज्ञान के अधिकारी बन गये ।
अतः शास्त्रदृष्टि से शास्त्राध्ययन और चिंतन-मनन कर, उस के द्वारा विश्वदर्शन करने से ही परब्रह्म परमात्मावस्था को प्राप्त कर सकेंगे।
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