Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 605
________________ पुद्गल परावर्तकाल ] पूर्व का अर्थ क्या ? यह पूर्व शब्द शास्त्र, नथ जैसे अर्थ में उपयोग किया गया शब्द है । तीर्थकर जब धर्मतीर्थ की स्थापना करते हैं तब पूर्व का उपदेश देते हैं । फिर गणधर इन उपदेशों के आधार पर 'आचारांग' आदि सूत्रों की रचना करते हैं । २१. पुग़लपरावर्त काल जहां गणित का प्रवेश असंभव है, ऐसे काल को जानने के लिए 'पल्योपम' 'सागरोपम' 'उत्सपिणी' 'अवसपिणी' 'काल चक्र' 'पुद्गल परावर्त' जैसे शब्दों का सर्जन किया गया है । ऐसे शब्दों की स्पष्ट परिभाषा ग्रन्थों में दी गई है । यहां अपन 'प्रवचन सारोद्धार' ग्रंथ के आधार पर 'पुद्गल परावर्त' काल को समझेंगे । १० कोडा कोडी [१० कोड x १० क्रोड] सागरोपम - १ उत्सर्पिणी - १ अवसर्पिणी ऐसे अनंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी का समूह हो तब एक पुद्गल परावर्त कहा जाता है । अतीत काल अनन्त पुद्गलपरावर्त का होता है। अतीत काल से अनंत गुना ज्यादा भविष्य काल है । अर्थात् अनागत काल में जो पुद्गल परावर्त हैं वे अतीत काल से अनन्त गुना ज्यादा हैं । यह 'पुद्गल परावर्त' चार तरह का है : (१) द्रव्य पुद्गल परावर्त (२) क्षेत्र पुद्गल परावर्त (३) काल पुद्गल परावर्त (४) भाव पुद्गल परावर्त ये चारों पुद्गल परावर्त २-२ तरह के हैं : (१) बादर (२) सूक्ष्म 1. 'ओसप्पिणी अणता पोग्गल परियट्टओ मुणेयन्बो । तेऽणंता तीयद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा ।।' 2. पोग्गलपरियट्टो इह दव्वाइ चउव्विहो मुणेयव्वो ।' --प्रवचनसारोद्धार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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