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चार अनुयोग ]
अरिहंत भगवंत का उपदेश ही राग-द्वेष के बन्ध को तोड़ने में समर्थ है । इसलिए इस अर्हद्वचन की व्याख्या करनी चाहिए। पूर्वाचार्यों ने चार अनुयोगों में अर्हद्वचन को विभाजित किया है।
(१) धर्मकथा-अनुयोग (२) गणित-अनुयोग (३) द्रव्य-अनुयोग (४) चरण-करण-अनुयोग
अनयोग अर्थात व्याख्या । धर्मकथाओं का वर्णन श्री उत्तराध्ययन आदि में है । गणित का विषय सूर्यप्रज्ञप्ति आदि में वर्णित है । द्रव्यों की चर्चा-विचारणा चौदह पूर्व में और सन्मतितर्क आदि ग्रन्थों में है। चरण-करण का विवेचन आचारांग सूत्र आदि में किया गया है ।
इस तरह वर्तमान में उपलब्ध ४५ आगमों को इन चार अनुयोगों में विभक्त किया गया है ।
२६ ब्रह्म-अध्ययन 'नियाग-अष्टक' में कहा है : ब्रह्माध्ययन निष्ठावान् परब्रह्म समाहितः । ब्राह्मणो लिप्यते नापैः नियागप्रतिपत्तिमान् ।।
इस श्लोक के विवेचन में 'ब्रह्म-अध्ययन' में निष्ठा, श्रद्धा, आस्था रखने के लिए कहा है ।
श्री आचारांग सूत्र का प्रथम भाग यही ब्रह्म अध्ययन है । हालांकि यह श्रुतस्कंध है, परन्तु श्री यशोविजयजी महाराज ने अध्ययन के रुप में निर्देश किया है। इस प्रथम श्रुतस्कंध के नौ अध्ययन थे परन्तु इनका 'महापरिज्ञा' नामक सातवां अध्ययन करीब हजार वर्षों से लुप्त है ।
'सत्थपरिण्णा लोगविजओ य सीओसणिज्ज सम्मत्तं । तह लोगसारनामं धुयं तह महापरिण्णा य ।। अट्ठएम य विमोक्खो उवहाणसुयं च नवमगं भणियं ।'
-आचारांग-नियुक्ति, ३१-३२
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