Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 622
________________ ज्ञानसार (१) शस्त्र परिज्ञा (६) धूताध्ययन (२) लोक विजय (७) महा परिज्ञा (३) शीतोष्णीय (८) विमोक्ष (४) सम्यक्त्व (६) उपद्यानश्रुत (५) लोकसार श्री शीलांकाचार्यजी कहते हैं " ये नौ अध्ययन संयमी आत्मा को मूल गुण और उत्तर गुणों में स्थिर करते हैं, इसलिए कर्म निर्जरा के लिए इन अध्ययनों का परिशीलन करना चाहिए।' ३०. पैंतालीस आगम __आज से २५०० वर्ष पहले श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सर्वज्ञता प्राप्त करके धर्मतीर्थ की स्थापना की थी। उन्होंने ग्यारह विद्वान् ब्राह्मणों को दीक्षा देकर उन्हें 'गणधर' की पदवी दी । भगवंत ने ११ गणधरों को 'त्रिपदी' दी । 'उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा।' इस त्रिपदी के आधार पर गणधरों ने 'द्वादशांगो' (बारह शास्त्रों) की रचना की। पांचवें गणधर सुधर्मा स्वामी ने जो द्वादशांगी की रचना की, उनमें से बारहवां अंग 'दृष्टिवाद' लुप्त हो गया है । जो ग्यारह अंग रहे हैं उनमें से भी बहुत सा भाग नष्ट हो गया है, फिर भी जो रहा उसको आधार मानकर कालांतर में अन्य आगमों की रचना की गई है। ___ इस तरह पिछले सैंकड़ों वर्षों से '४५ आगम' प्रसिद्ध हैं । इन आगमों के ६ विभाग हैं : ११ अंग १२ उपांग ४ मूल सूत्र ६ छेद सूत्र १० प्रकीर्णक २ चूलिका सूत्र इन ४५ आगमों पर जो विवरण लिखे गये हैं, वे चार प्रकार के हैं-(१) नियुक्ति (२) भाष्य (३) चूर्णी (४) टीका । ये विवरण संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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