Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 612
________________ ७६ ] (३) जयंत ( ४ ) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध अधोलोक : अधोलोक में नारकी, भवनपति देव, व्यंतर आदि देव रहते हैं । सात नरक (१) रत्नप्रभा (२) शर्कराप्रभा (३) वालुकाप्रभा ( ४ ) पंकप्रभा (५) धूमप्रभा (६) तमः प्रभा ( ७ ) तमः तमः प्रभा क्रमश: होती है । ऊंचाई में सात नरक सात राजलोक प्रमाण है । सातवीं नरक की चौड़ाई सात राजलोक जितनी है । [ ज्ञानसार एक के बाद एक नरक में ज्यादा ज्यादा दु:ख वेदना मध्यलोक : मध्यलोक में मनुष्य, ज्योतिषदेव, तिर्यंच जीव रहते हैं । मध्यलोक में असंख्य द्वीप और समुद्र हैं । अपन मध्यलोक में हैं । Jain Education International २४. यतिधर्म यति यानी मुनि साधु श्रमण । और इनका जो धर्म है वह यतिधर्म कहलाता है । साधुजीवन की भूमिका में मनुष्य को इन दस प्रकार के धर्म की आराधना करनी पड़ती है । ( १ ) क्षान्ति : क्षमाधर्म का पालन करना । ( २ ) मार्दव : मद का त्याग कर नम्र बनना । (३) आर्जव: माया का त्याग कर सरल बनना । (४) मुक्ति : निर्लोभता । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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