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चौदह राजलोक ]
(२) इस लोक को किसी ने उठाया हुआ नहीं है । अर्थात् यह किसी के सहारे पर ठहरा हुआ नहीं है ।
(३) यह लोक अनादि काल से है। और अनंत काल तक रहेगा।
(४) यह विश्व धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय से परिपूर्ण है ।
लोक के तीन भाग हैं : (१) ऊर्ध्वलोक । (२) अधोलोक ।
(३) मध्यलोक । उर्ध्वलोक :
उर्ध्वलोक में वैमानिक देव और सिद्ध आत्मायें रहती हैं । बारह देवलोक : (१) सौधर्म (२) ईशान (३) सनत्कुमार (४) माहेन्द्र (५) ब्रह्मलोक (६) लान्तक (७) महाशुक्र (८) सहस्रार (६) आनत (१०) प्राणत (११) आरण (१२) अच्युत
बारह देवलोक पूरे होने के बाद उनके उपर नौ ग्रैवेयक देवलोक हैं । उनके ऊपर अनुत्तर देवलोक हैं ।
पांच अनुत्तर-देवलोक : (१) विजय (२) विजयंत
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