Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 617
________________ निक्षेप ] [ ८१ (९) उन्मत्त (१०) लंगड़ा (११) खांडने वाला (१२) पीसने वाला (१३) धुनकने वाला (१४) कातने वाला (१५) दही बिलोने वाला (१६) गर्भवती स्त्री (१७) दूध पीते बच्चे की माँ (१८) मालिक की अनुपस्थिति में नोकर (३७) उन्मिश्र : सचित्त-अचित्त मिला कर देवे वह लेना । (३८) अपरिणत : पूर्ण अचित्त न हुआ हो वह लेना अथवा दो साधु में एक को निर्दोष लगे और दूसरे को सदोष लगे वह लेना । (३६) लिप्त : शहद, दही से लिपा हुआ लेना । (४०) छर्दित : भूमि पर गिरा हुआ लेना । (४१) निक्षिप्त : सचित्त के साथ संघट्टा वाला लेना। (४२) संहृत : एक बर्तन से दूसरे बर्तन में खाली करके, खाली बर्तन से बोहराना । साधु साध्वी को इन ४२ दोषों की जानकारी होमी ही चाहिए। तभी वे भिक्षा लाने के योग्य बन सकते हैं । २७. चार निक्षेप किसी भी शब्द का अर्थ निरुपण करना हो तो वह निक्षेप' पूर्वक किया जाये तो स्पष्ट रुप से समझ में आ सकता है। 'निक्षेपणं निक्षेपः' निरुपण करने को निक्षेप कहते हैं । यह निक्षेप जघन्य से चार प्रकार का है और उत्कृष्ट से अनेक प्रकार का है । यहां हम चार प्रकार के निक्षेप का विवेचन करेंगे । (१) नाम । (२) स्थापना । (३) द्रव्य । (४) भाव । नाम निक्षेप : यद् वस्तुनोऽभिधानं स्थितमन्यार्थे तदर्थ निरपेक्षम् । पर्यायानभिधेयं च नाम यादृच्छिकं च तथा । 1. अनुयोग द्वार-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636