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[ ज्ञानसार (१) बादर द्रव्य पुद्गलपरावत : ___एक जीव संसारअटवी में भ्रमण करता हआ, अनंत भवों में औदारिक-वैक्रिय-तैजस-कार्मण-भाषा-श्वासोच्छवास और मन रुप सर्व पुद्गलों को ( १४ राजलोक में रहे हुए ) ग्रहण कर, भोगकर रख दे........इसमें जितना समय लगे उतना काल बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त काल कहलाता है। (आहारक शरीर को तो एक जीव मात्र चार बार ही बनाता है । अर्थात् पुद्गलपरावर्त काल में वह उपयोगी नहीं होने से उसे नहीं लिया है ।) (२) सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्त : ___औदारिक आदि शरीरों में से किसी एक शरीर से एक जीव संसार में परिभ्रमण करता हुआ सब पुद्गलों को पकड कर, भोगकर छोड़ दे, उस काल को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं। विवक्षित शरोर के अलावा दूसरे शरीर से जो पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं और भोगे जाते हैं वे नहीं गिने जाते हैं। (३) बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्त :
क्रम से या उत्क्रम से एक जीव लोकाकाश के सब प्रदेशों को मृत्यु से स्पर्श करने में जितना समय लगाता है उस कालविशेष को बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्त कहते हैं । अर्थात् चौदह राजलोक के असंख्य आकाश प्रदेश (आकाश का एक ऐसा भाग कि जिसका और भाग न हो सके) हैं । इन एक एक आकाशप्रदेश में उस जीव की मृत्यु होती है। इसमें जो समय लगता है उसे 'बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्त' कहते हैं। (४) सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्त : ___ जीव की कम से कम अवगाहना भी असंख्य प्रदेशात्मक है। फिर भी कल्पना करें कि जीव की किसी एक आकाशप्रदेश में मृत्यु हई है। इसके बाद इसके पास के आकाशप्रदेश में मृत्यु होती है। फिर इसके पास के तीसरे आकाशप्रदेश में मृत्यु होती है । इस तरह क्रमशः एक के बाद एक आकाशप्रदेश को मृत्यु से स्पर्श करता है और इस तरह समस्त लोकाकाश को मृत्यु द्वारा स्पर्श किया जाय, तब सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल. परावर्त काल कहा जाता है ।
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