Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 603
________________ चौदह पूर्व ] [ ६७ 'मोहोपशमो एकस्मिन् भवे द्विः स्यादसन्ततः । यस्मिन् भवे तूपशम क्षयो मोहस्य तत्र न ।” वेदोदय और श्रेणी . ऊपर जो उपशम श्रेणी का वर्णन किया गया है वह पुरुषवेद के उदय होने पर श्रेणी प्राप्त करने वाली आत्मा को लेकर किया गया है। जो आत्मा नपुंसक वेद के उदय में श्रेणी मांडता है वह सर्वप्रथम अनंतानबंधी और दर्शनत्रिक का तो उपशमन करता ही है। परंतु स्त्रीवेद या पुरुषवेद के उदय में श्रेणी माँडने वाला आत्मा जहां नपुंसक वेद का उपशमन करता है, वहाँ नपुंसक वेद में श्रेणी मांडने वाला आत्मा भी नपुंसक वेद का ही उपशमन करता है। इसके बाद स्त्रीवेद और नपुंसकवेद-दोनों का उपशमन करता है। यह उपशमन नपुंसकवेद के उदयकाल के उपान्त्य समय तक होता है। वहां स्त्रीवेद का पूर्णरूपेण उपशमन होता है। आगे सिर्फ नपुंसकवेद की एक समय की उदय स्थिति शेष रहती है, वह भी भोगने पर आत्मा अवेदक बनती है। इसके बाद पुरुषवेद वगैरह ७ प्रकृति का एक साथ उपशमन करना चालू करता है । - जो आत्मा स्त्रीवेद के उदय में श्रेणी मांडता है वह दर्शन त्रिक के बाद नपुंसक वेद का उपशमन करता है, इसके बाद चरम समय जितनी उदय स्थिति को छोड़कर स्त्रीवेद के शेष दलिकों का उपशमन करता है । चरम समय का दलिक भोगकर क्षय होने के बाद अवेदी बनता है । अवेदक बनने के बाद पुरुषवेद आदि ७ प्रकृति का उपशमन करता है। २०. चौदह पूर्व पूर्वप : दसंख्या विवरण १. उत्पाद जिसमें 'उत्पाद' के आधार पर सर्व द्रव्य और ११ क्रोड पद सर्व पर्यायों की प्ररूपणा की गई है । २. आग्रायणीय जिसमें सर्व द्रव्य, सर्व पर्याय और जीवों के ६६ लाख पद परिमाण का वर्णन किया गया है । ३. वीर्य प्रवाद जिसमें जीव और अजीवों के वीर्य का वर्णन ७० लाख पद किया गया है । [अग्र-परिमाण, अयनम्-परिच्छेद अर्थात् ज्ञान] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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