Book Title: Gyansara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 586
________________ ५० ] [ ज्ञानसार * इस प्रकार तप से वह अल्पाहारी बने, इन्द्रियों को स्पर्शादि विषयों से दूर रखे, मधुर आहार में निःसंग बने, इन्द्रियविजेता बने । सत्त्व भावना इस भावना में मुनि ‘पाँच प्रतिमाओं' का पालन करें । के जनशून्य....मलिन....तथा अन्धकारपूर्ण उपाश्रय में निद्रा का त्याग कर कायोत्सर्ग-ध्यान में खड़ा रहकर भय को जीतकर निर्भय बने । उपाश्रय में फिरनेवाले चूहे, बिल्ली आदि द्वारा होने वाले उपसर्गों से भय प्राप्त न करे, भाग न जाए । उपाश्रय के बाहर रात्रि के समय कायोत्सर्गध्यान में खड़ा रह कर चूहे, बिल्ली, कुत्ते तथा चोरादि के भय को जीते । * जहाँ चार मार्ग मिलते हों, वहाँ जाकर रात्रि के समय ध्यान में रहे । पशु, चोरादि के भय को जीते ।। * खण्डहर........शून्यघर में जाकर रात्रि के समय ध्यान में स्थिर रहकर उपद्रवों से डरे नहीं और निर्भय रहे । * श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़ा रहे और सविशेष भयों को जीते । इस प्रकार सत्त्व भावना से अभ्यस्त होने से दिन में या रात में, देव-दानव से भी नहीं डरे और जिनकल्प का निर्भयता से वहन करे । सूत्र भावना काल का प्रमाण जानने के लिये वह ऐसा श्रुताभ्यास करे कि खुद के नाम जैसा अभ्यास हो जाय । सूत्रार्थ के परिशीलन द्वारा, वह अन्य संयमानुष्ठानों के प्रारंभकाल तथा समाप्तिकाल को जान ले । दिन और रात के समय को जान ले । कब कौन सा प्रहर और घड़ी चल रही है, वह जान ले । आवश्यक, भिक्षा, विहार........आदि का समय छाया नापे बिना जान ले । सूत्र भावना से चित्त की एकाग्रता, महान् निर्जरा वगैरह अनेक गुणों को वह सिद्ध करता है । 'सुयभावणाए नाणं दसणं तवसंजमं च परिणमइ' -बृहत्कल्प० गाथा १३४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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