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नियाग [ यज्ञ ]
अर्थ
यः कर्म हुतवान् दिप्ते ब्रह्माग्नौ ध्यानध्याय्याया ! सो निश्चितेन यागेन नियागप्रतिपत्तिमान् ॥ १ ॥२१७॥
: प्रदीप्त बह्य रूपी अग्नि में जिसने ध्यान रूपी वेद की ऋचा (मंत्र) द्वारा कर्मों का होम कर दिया है, ऐसा मुनि निर्धारित भावयज्ञ द्वारा नियाग को प्राप्त हुआ है ।
विवेचन : यज्ञ-याग !
जैन धर्म और यज्ञ-याग ?
अरे भाई, चौंक न पडो ! यहाँ ऐसे दिव्य यज्ञ का वर्णन किया गया है कि जिसे आत्मसात् कर तुम मंत्रमुग्ध हो उठोगे ! यहाँ वेदों की विकृति में से उत्पन्न यज्ञ की बात नहीं है। ना हीं अश्वमेघ यज्ञ है, ना ही पितृमेघ यज्ञ की बात है ! ठीक वैसे ही जड़ हिंसात्मक क्रियाकाण्ड नहीं हैं, प्रज्ञान जीवों की बलि चढाने का कोई प्रपंच नहीं है ।
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कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भगवंत श्री हेमचंद्राचार्य ने, अपने मूल्यवान् ग्रन्थ 'त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र' में, हिंसक यज्ञों की उत्पत्ति का रहस्य नारद मुनि के मुख से लंकेश रावण को बताया है । वैर का बदला लेने की तीव्र लालसा के कारण उत्पन्न कषायों द्वारा हिंसक यज्ञों के पैदा होने का मर्मभेदी इतिहास बताया है ।
जैनेतर संप्रदायों में यज्ञ को उत्पत्ति को लेकर विविध मंतव्य प्रचलित हैं ! उन में से एक मंतव्य यह भी है : प्रलय से पृथ्वी के बच जाने के बाद वैवस्वत मनु ने सर्वप्रथम यज्ञ किया था ! तब से आर्य प्रजा में, पृथ्वी पर सूर्य के प्रतिनिधि अग्निदेव को प्रसन्न करने हेतु आहुति देने की प्रथा चल पडी है ! सामान्यतः ब्राह्मण-ग्रंथ यज्ञ की सूक्ष्मातिसूक्ष्म क्रियाओं का विधान करते हैं ।
जिस तरह उपनिषदों में यज्ञ को, जड क्रियाविधि के बजाय अध्यात्म का रूप प्रदान किया गया है, ठीक उसी तरह पूज्य उपाध्यायजी महाराज भी यज्ञ का एक अभिनव रूपक सबके समक्ष उपस्थित करते हैं !
• जाज्वल्यमान ब्रह्म साक्षात् अग्नि है !
० ध्यान ( धर्मं - शुकुल) देद की ऋचाएँ हैं !
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