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वाचिक ध्यान
सामान्यत: आम विचार ऐसा है कि 'ध्यान' मानसिक ही होता है । परन्तु श्री आवश्यक सूत्र में 'वाचिक ध्यान' भी बताया गया है । एवंविहा गिरा मे वत्तव्या एरिसी न बत्तव्वा । इय वेयालियवक्कस्स भासओ वाइगं झाणं ॥
'मुझे इस प्रकार की वाणी बोलनी चाहिये, ऐसी नहीं बोलनी चाहिये ।' इस प्रकार विचारपूर्वक बोलनेवाला वक्ता 'वाचिक ध्यानी' है ।
[ ज्ञानसार
ध्यान- काल
ध्यान के लिए उचित काल भी वह है कि जिस समय मन-वचनकाया के योग स्वस्थ हों । ध्यान के लिए दिवस-रात के समय का नियमन नहीं है ।
'कालोऽपि स एव ध्यानोचितः यत्र काले मनोयोगादिस्वास्थ्य प्रधान प्राप्नोति नैव च दिवसनिशावेलादिनियमनं ध्यायिनो भणितम् ।' श्री हरिभद्रसूरि । आवश्यक सूत्रे ।
४. शुक्लध्यान
शुक्लध्यान के चार प्रकार हैं । वे 'शुक्लध्यान के चार पाया' के रूप में प्रसिद्ध हैं ।
१. पृथक्त्व - वितर्क - सविचार
* पृथक्त्वसहित, वितर्कसहित और विचारसहित प्रथम सुनिर्मल शुक्लध्यान है । यह ध्यान मन-वचन-काया के योग वाले साधु को हो सकता है ।
+ पृथक्त्व = अनेकत्वम् । ध्यान को फिरने की विविधता । वितर्क = श्रुतचिंता | चौदपूर्वगत श्रुतज्ञान का चिंतन ।
* सवितर्क सविचारं सपृथक्त्वमुदाहृतं । त्रियोगयोगिनः साधोराद्यं शुक्लं सुनिर्मलम् ।। ६० ।।
+ श्रुतचिन्ता वितर्कः स्यात् विचारः संक्रमो मतः । पृथक्त्वं स्यादनेकत्व भवत्येतत्त्रयात्मकम् ॥ ६१ ॥
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- गुणस्थान-क्रमारोहे
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