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४१. तप
वासनाओं पर कुपित योगी, अपने शरीर पर क्रोध करता है, रोष करता है और तपश्चर्या के माध्यम से शरीर पर आक्रमण कर देता है, टूट पडता
अरे, प्रात्मन् ! शरीर पर टूट पडने से क्या लाभ ? क्या तुम नहीं जानते कि शरीर तो धर्म-साधना का एकमेव साधक है ? काम-वासनाएं शैतान है, शरीर नहीं ! अतः तपश्चर्या का लक्ष्य शरीर नहीं, बल्कि कामवासनाएं होना चाहिए । प्रस्तुत प्रकरण में ग्रंथकार ने हमें यही विवेकदृष्टि प्रदान की है । इंद्रियों को नुकसान हो, ऐसी तपश्चर्या नहीं करने को है ।
बाह्य तप की उपयोगिता आभ्यंतर तप की दृष्टि से है और अभ्यंतर तप को आत्मविशुद्धि का अनन्य साधन बताया है ।
हे तपस्वीगण ! तुम्हें ईम अध्याय का ध्यान-पूर्वक पठन मनन करना होगा !
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