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'ज्ञानसार' ग्रंथ के ३२ अष्टकों में से प्रस्तुत अन्तिम श्लोकों में एकान्तदृष्टि का परित्याग कर अनेकान्त दृष्टि अपनाने की सीख दी गयी है । किसी प्रकार के वाद-विवाद और वितंडावाद के झंझट में फँसे बिना, संवादी धर्मवाद का आश्रय ग्रहण करने का उपदेश दिया गया है । परमानन्द का यही परम पथ है । पूर्णानन्दी बनने का यही एकमेव अद्भुत उपाय है । आत्मा को परम शान्ति प्रदान करने का यही एक राजमार्ग है ।
परमानन्दी सदा-सर्वदा जयवन्त हो !
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ज्ञानसार
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